Friday, May 13, 2022

कहीं इंटरनेट तक सीमित ना हो जाये गौरैया का अस्तित्व : प्राज / The existence of sparrow should not be limited to the internet


                         (अभिव्यक्ति


अतीत के पन्नो में कुछ यादें धुधंली-धुधंली सी हैं। वो आंगन पूरानी जो अब कंकरीट से ढ़क्कर हॉल के शक्ल में दिखने लगी है। परिवार जहाँ संख्याओं में बहुत दिखते थे, अब दो-चार की भीड़ में सिमटने लगी है। खुले आंगन में छोटी-छोटी चिड़िया चीं...! चीं...! करती आंगन पर आती, माँ भी कभी कनकी, कभी चावल के दाने आंगन में बिखेर दिया करती थी। उसे गौरैया कहते थे, मगर माँ उसे ब्राम्हण चिड़िया (समझदार) कहती। वो आती फुदक-फुदक कर सारे चावल के दाने मुह में समेंट लेती। कुछ खूद खाती-कुछ अपने बच्चों के लिए लपेट लेती। गौरैया जिसे पकड़ने के लिए कई पैतरों से मैं भी खेला था। बांस के सुपा से चिड़िया पकड़ने का फंदा लगाया, घर के बड़ों ने तब समझाया कि ये पक्षी आजादी में उत्सव के स्वर भरते हैं। इन्हे पकड़ना, मारना नहीं...!!! ये बड़े ब्राम्हण (सभ्य) हैं। इन्हे पकड़कर पाप नहीं करते हैं।
                    बचपन में ऐसी हिदायतें तो आपको और मुझे अवश्य मिली होंगी। जिसमें पक्षियों के संरक्षण को लेकर घर में दादी-नानी ने कहानियों के माध्यम से अपने अनुभव के गुर बातों ही बातों बता ही दिया करती थी। ये घरेलू गौरैया भी बड़ी भोली, घर के हर कोनों में उड़ती, कभी चौखट तो कभी रौशनदान के ऊपर घाँस-फूँस की नीड़ भी तैयार करने लग जाती थी। लेकिन अब न जाने क्या हुआ है? ना पक्षी दिखते हैं ना घरों के अंदर घोंसले बनते हैं। पैसर डोमेस्टिकस के मानक नाम से पहचानें जानें वाली चिड़िया 10-15 बरस पहले बेहतर स्थिति और आंगन, पार्क में या पेड़ों के साखों पर नीड़ बनाते दिख जाते थे। लेकिन अचानक ऐसा कौन सा परिवर्तन हुआ की ये घरों से गायब हो गए।
                  वर्ष 2020 में आईजेआरआरटी में प्रकाशित मोहरिल एस, एम एस साँखला और एसएस सोनन की शोध बताती है की नेटवर्क की सघनता के लिए कई पोर्टेबल टावर लगाए गए हैं, खासकर भीड़-भाड़ वाले शहरों में और ज्यादा आबादी वाले क्षेत्रों में। अब, इन स्थानों पर बने निचले स्टेशनों में ट्रांसीवर हैं जो उपयोगकर्ताओं के बीच संचार का निर्धारण करने के लिए आवृत्ति (आरएफ) तरंगों को नियोजित करते हैं। वहीं मोबाइल कम्पनियों में बढ़ती प्रतिस्पर्धा हेवी इलेक्ट्रोमैग्नेटिक वेव उत्पन्न करने वाले ट्रांसमीटरों के उपयोग करके हैं। इलेक्ट्रोमैग्नेटिक रेडिएशन में अधिक देर से रहने पर यह कैंसर का रूप में मानवीय शरीर को क्षति पहुँची सकती है। टावरों से निकलने वाले रेडिएशन मनुष्य के साथ -साथ छोटे बड़े सभी जीव-जंतूओं के लिए हानिकारक है। 
              पक्षी विज्ञानी हेमंत सिंह बताते हैं की गौरैया की आबादी में 60 से 80 फीसदी तक की कमी आई है। यदि इसके संरक्षण के उचित प्रयास नहीं किए गए तो हो सकता है कि गौरैया इतिहास बन जाये। ब्रिटेन की रॉयल सोसायटी ऑफ प्रोटेक्शन ऑफ बर्डस ने भारत से लेकर विश्व के विभिन्न हिस्सों में अनुसंधानकर्ताओं द्वारा किए गए अध्ययनों के आधार पर गौरैया को रेड लिस्ट में चिन्हाँकित किया है।  रेडिएशन के दुष्परिणाम स्वरूप विभिन्न प्रकार के जीव-जंतुओं व पक्षियों की प्रजातियां लुप्त हो चली हैं और भारत में अब पक्षियों की 42 प्रजातियां विलुप्त होने की कगार पर हैं।
            4जी, 5जी के डिजिटल बैंडविड्थ के वशीकरण में फसकर हम कहीं प्रकृति के विनाश में भागीदार तो नहीं है। यह विचार करना आवश्यक है। गौरैया के इस गति से विलुप्त होने की वर्तमान स्थिति में यदि संरक्षण के प्रति कोई कदम नहीं उठाये गए तो वह दिन दूर नहीं जब गुगल, विकिपीडिया और वर्चुअल मोड पर ही गौरैया की आवाज सूननें और देखने को मिलेगा। क्योंकि वास्तविक के धरातल पर तो हम सब कुछ खो चुके रहेंगें। या फिर फिल्म 2.0 की भांति पक्षीराज के इंतज़ार में रहेंगे जो पक्षियों के संरक्षण का पाठ हमें पढ़ा पाये। 


लेखक
पुखराज प्राज
छत्तीसगढ़