Friday, May 13, 2022

तुलसी के संवर्धन के पीछे की वैज्ञानिकता का आकलन : प्राज / Assessment of the science behind the cultivation of Tulsi


                           (विचार


गुलज़ार साहब के कलम ने घर के महत्व को उकेरने के प्रयास से क्या खूब लिखा है कि, 'दो दीवाने शहर में, रात में और दोपहर में,आब-ओ-दाना ढूँढते हैं एक आशियाना ढूँढते हैं।' नीड़ की निर्माण को लेकर जिंदगी के विभिन्न पहलुओं से दो चार होते लोगों से समझ सकते हैं। घर का महत्व क्या हैं? वास्तुशास्त्र में घर के निर्माण से लेकर प्रत्येक फलकों पर वैज्ञानिकता का प्रमाण मिलता है। जैसे पूर्व समय में घर के पूरे सीमा चक्र में आँगन की महत्ता अलग है। उस स्थान को हम परिवारिक पारिस्थितिकी में संस्कारों के आदान- प्रदान से लेकर, वैज्ञानिक लाभांश प्रदान करने वाले स्थान के रूप में देख सकते हैं।
              आंगन जहाँ संयुक्त परिवर के सदस्यों के लिए चर्चा परिचर्चा का ओपन डेस्क जैसा स्थिति, जहाँ पर्याप्त धूप से विटामिन डी और तुलसी के पौधे की अवस्थिति से घर के वातावरण में शुद्ध प्राणवायु (आक्सीजन) का निरंतर प्रवाह होता है। मेरा लक्ष्यित विषय आँगन या आँगन के ईर्दगिर्द घुमती जिंदगी के सामाजिक या भारतीय सभ्यता के वैज्ञानिक दृष्टिकोण को पर्याय देना नहीं अपितु विलुप्त हो रहे तुलसी के पौधे के संरक्षण को प्रधानता देना है। भारतीय संस्कृति में तुलसी के पौधे का महत्व का उल्लेख कई हिंदू ग्रंथों और शास्त्रों में किया गया है। तुलसी के पौधे के कई गुण पद्मपुराण, ब्रह्मवैवर्त, स्कंद पुराण, भविष्य पुराण और गुरुड़ पुराण में बताए गए हैं।
            तुलसी के पौधे के आस-पास सकारात्मक ऊर्जा होती है। तुलसी में एंटीबायोटिक, एंटीफंगल और एंटीबैक्टीरियल गुण विद्यमान रहते हैं। जो शरीर को संक्रमण से लड़ने में सहायक होती हैं। तुलसी के पत्ते नियमित रूप से ग्रहण करने से शरीर में ऊर्जा का प्रवाह होता है। इंसान की उम्र भी वृद्धि प्रदर्शित होती है। तुलसी से रोगों का संक्रमण विफल कर प्रतिरोधी क्षमता बढ़ती है। साथ ही वातावरण की शुद्धि के लिए भी तुलसी का काफी योगदान रहता है। तुलसी के पत्ते सांस की बदबू से छुटकारा दिलाते हैं। कैंसर के मरीजों के लिए भी तुलसी औषधि के समान है जो बहुत ही लाभकारी है। तुलसी के बीज से नव जीवन के सतति में कारगर होते हैं।
            ऑसीमम सैक्टम यानी तुलसी एक द्विबीजपत्री तथा शाकीय, औषधीय पौधा है। वहीं रासायनिक अवयवों को खंगालने का प्रयास करे तो तुलसी में अनेक जैव सक्रिय रसायन पाए गए हैं।  ट्रैनिन, सैवोनिन, ग्लाइकोसाइड और एल्केलाइड्स प्रमुख हैं। कई प्रायोगिक अनुसंधानों के बावजूद इनका विश्लेषण नहीं हो पाया है। वैल्थ ऑफ इण्डिया के अनुसार इस तेल में लगभग 71 फीसदी यूजीनॉल, बीस प्रतिशत यूजीनॉल मिथाइल ईथर तथा तीन प्रतिशत कार्वाकोल होता है। तुलसी का पौधा हिंदू धर्म में पवित्र माना जाता है और लोग इसे अपने घर के आँगन या दरवाजे पर या बाग में आवश्यक रूप से लगाते हैं। भारतीय संस्कृति के चिर पुरातन ग्रंथ वेदों में भी तुलसी के गुणों एवं उसकी उपयोगिता का वर्णन मिलता है। इसके अतिरिक्त ऐलोपैथी, होमियोपैथी और यूनानी दवाओं में भी तुलसी का किसी न किसी स्वरूप में प्रयोग किया जा रहा है।
       बिखरते टूटते संयुक्त परिवार एवं तंग जगहों पर निवास करने के लिए मजबूर लोगों के लाइफ स्टाइल के कारण ये पौधें गमलों तक सीमित होने लगे हैं। वहीं मकान निर्माण शैली में आंगन के विलुप्त होती नव आर्किटेक्चर पद्धति के बीच तुलसी के पौधे घरों से विलुप्त होने लगे हैं। जिसका असर कहीं ना कहीं हमारे स्वास्थ्य पर अवश्य पड़ने लगा है। तनाव और दबाव पूर्व मानवीय व्यवहारिकता को इसके परिणामस्वरूप देखा जा सकता है। 


लेखक
पुखराज प्राज
छत्तीसगढ़