(आरोग्य)
भारतीय दर्शन प्रारंभिक काल से विस्तृत और वैश्विक दृष्टिकोण से सुसज्जित है। परोपकार और मनीषियों की धरती सदैव वसुधैवकुटुम्बकम् की धात्री रही है। किसी एक परिवार, कुल, ग्राम, नगर, राज्य या राष्ट्र नहीं, अपितू पूरे विश्व के कल्याण के लिए अतीत से लेकर आज तक हम गर्व से कहते हैं कि-
'सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चित् दुःखभाग् भवेत्।।'
हम एक या अनेक की कल्पना से परेय सभी सुखी हों। सभी रोगमुक्त रहें। सभी मंगलमय जीवन के साक्षी बनें और किसी को भी दुःख का भागी न बनना पड़े। इस विचारधारा के समर्थक है। वैश्विक पटल पर आयुर्वेद जिसके जनक भगवान धन्वन्तरि हैं। वहीं आयुर्वेद से चिकित्सा प्रणाली का सारगर्भिता प्रदान करने वाले भारतीय आयुर्वेद चिकित्सा के जनक चरक ऋषि हैं। चरक जी के अनुसार आज भी आयुर्वेद में 40 औषधी ऐसी हैं। जो व्यक्ति को कोमा से बाहर ला सकती हैं। इसके विपरित अंग्रेजी चिकित्सा में एक भी दवाई ऐसी नही हैं। चरक- संहिता सबसे बड़ी आयुर्वेद की ग्रंथ हैं। इस ग्रंथ में 120 पाठ और 8 स्थान हैं। इस पुस्तक को पढ़कर आपको भारतीय होने गर्व महसूस होंगा।
वर्ष 2019 में मेडिकल जर्नल ‘लैंसेट’ के एक अध्ययन के मुताबिक, स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता और लोगों तक उनकी पहुंच के मामले में भारत विश्व के 195 देशों में 145वें पायदान पर है। यह जानकर दुख भी होता है की जिस भारतवर्ष ने आयुर्वेद का जन्म किया। जिस पवित्र भूमि से चिकित्सा के शैल्य विज्ञान से लेकर चिकित्सा के छात्र कैसे हो? सभी का ज्ञान दिया है। वर्तमान समय में हम ही स्वस्थ्य सेवाओं के लिए पिछड़े जाने जाते हैं। चरक संहिता के अध्याय 3.8.6 में आदर्श चिकित्सा छात्र के संदर्भ में पर्याय देते हुए कहा है की, 'वह मृदु स्वभाव का, स्वभाव से महान, अपने कार्यों में कभी भी मतलबी नहीं होना चाहिए। गर्व से मुक्त, मजबूत स्मृति, उदार मन, सत्य के प्रति समर्पित, एकांत पसंद, विचारशील स्वभाव, क्रोध से मुक्त, उत्कृष्ट चरित्र, दयालु, एक अध्ययन के शौकीन, सिद्धांत और व्यवहार दोनों के लिए समर्पित, जो सभी प्राणियों की भलाई चाहते हैं।'
चिकित्सा के क्षेत्र में कार्यरत् या प्रशिक्षु में यह गुण अध्ययनोंपरांत भी निरंतर बनाये रखने की आवश्यकता है। वहीं जीवन की उद्देशिका का उल्लेख करती अध्याय 1.1से 1.30 तक संक्षिप्तता से बताया गया है की जीवन के चार प्रकार का होता है, सुख,दुख,हित और और अहित । आयुर्वेद का उद्देश्य यह सिखाना है कि इन चार प्रकार के जीवन के लिए क्या अनुकूल है।
वहीं दिनचर्या के लिए वास्तविक भोज्य योजना से संदर्भ में चरक संहिता के अध्याय 1.28 से 1.48 तक सारगर्भित स्वरूप में कहा गया है की केवल संतुलित भोजन का पालन करना अनिवार्य है। क्योंकि अधिकांशतः बिमारियों का कारण असंतुलन भोजन प्रणाली और समय के कारण होता है।
वर्तमान कोविड-19 के काल में भारत वैश्विक फार्मा के रूप में उभार है। चुनौतियां तो कई रहीं लेकिन हमने संयम, संतुलन और निश्चित योजनात्मक कार्य शैली से इस महामारी से विजय प्राप्त की है। भारतीय दर्शन में आयुर्वेद का बड़ा योगदान है। जो किसी भी प्रकार के अवसाद का समूल नास करने में सक्षम है। जीवन में इंस्टेंट रिलीफ के फार्मूलेशन से अच्छा है। टोटल रिलीफ की ओर हमें अग्रसर होना चाहिए। हम स्वस्थ रहेंगे तो राष्ट्र सुरक्षित रहेगा। आयुर्वेद की ओर एक बार फिर बढ़ चलते हैं। फार्मा कम्पनियाँ तो हर्बल के टैग पर टैग लगाकर आपको संवर्धित ड्रग्स बाट रही है। निरोगता का ध्येय रखकर, आयुर्वेद के वास्तविक स्वरूप का उपयोग करें।
लेखक
पुखराज प्राज
छत्तीसगढ़