(अभिव्यक्ति)
भारतीय संस्कृति में पर्वों का विशेष स्थान है। यहाँ तक कि इसे त्यौहारों की संस्कृति कहना गलत नहीं होगा। साल भर कोई न कोई पर्व या उत्सव चलता ही रहता है। हर ॠतु में, हर महीने में कम से कम एक प्रमुख त्यौहार अवश्य मनाया जाता है। कुछ उत्सव किसी अंचल में मनाए जाते हैं तो कुछ भारत भर में भले ही नाम अलग-अलग हों। भारतीय सामाजिक तंत्र में पर्व के आयोजन से लेकर पर्व के समापन तक विभिन्न चरण होते हैं।
होली की सामाजिक तंत्र में प्रासंगिकता पर समाजशास्त्रीय अध्ययन की ओर एक प्रयास करने के लिए इच्छुक हूँ। होली जो भारतीय उपमहाद्वीप में बड़ा पर्व है। जिसे भारत के सभी वर्गों के लोगों में मनाया जाता है। यह पर्व जातिगत, क्षेत्रीय, धार्मिक, बौधिक एवं सामाजिक पहलुओं के बीच की दूरी को कम करने वाला पर्व है। होली, जो रंगोत्सव का पर्व है। यह भारत सही कई देशों तक प्रसिद्ध है। भारत के विभिन्न क्षेत्रों में होली कई स्वरूपों में मनाया जाता है। जैसे लट्ठमार होली, रंगोत्सव, पुष्प होली हैं। होली जो लोगों को आपस में जोड़ने का प्रयास है। यह पर्व एकता का प्रतीक है। रंगोत्सव के लक्ष्यों के विषय में यदि दार्शनिक होकर विचार करें तो प्रतीत होता है कि यह संदेश देती है की विविध रंगों के मेल से होली का उत्सव सम्पन्न होता है। ठीक उसी प्रकार भारत वर्ष में विभिन्न जाति, धर्म, पंथ और रंग को लोगों की विविधता में एकता भारतवर्ष की सबलता है।
सामाजिक तंत्र में विभिन्न स्तर और अलग-अलग बुद्धि लब्धता के लोगों का होना तो निश्चित है। ठीक वैसे ही कुछ ऐसे भी चर होते हैं। जो रंगोत्सव को एक अलग ही मानसिकता के नजरिये से देखते हैं। उन्हे लगता है,यह फुहड़ता प्रधान है। जबकी उनकी सोच ही उन्हें इस स्थिति में ला खड़ा करती है। उनके बारे में या उनके विचारों से मैं सहमत नहीं हूँ। क्योंकि होली की प्रासंगिकता से लेकर वास्तविक अवधारणा की तलाश करें तो, यह पर्व एकता और आपसी वैमनस्य को भूला कर सौहार्द्रता को बढ़ाने का पर्व है।
होली महोत्सव मनाने के पीछे लोगों की एक मजबूत सांस्कृतिक धारणा है। इस त्योहार का जश्न मनाने के पीछे विविध गाथाऍ लोगों का बुराई पर सच्चाई की शक्ति की जीत पर पूर्ण विश्वास है। लोग को विश्वास है कि परमात्मा हमेशा अपने प्रियजनों और सच्चे भक्तो को अपने बङे हाथो में रखते है। वे उन्हें बुरी शक्तियों से कभी भी हानि नहीं पहुँचने देते। यहां तक कि लोगों को अपने सभी पापों और समस्याओं को जलाने के लिए होलिका दहन के दौरान होलिका की पूजा करते हैं और बदले में बहुत खुशी और अच्छे स्वास्थ्य की कामना करते हैं। होली महोत्सव मनाने के पीछे एक और सांस्कृतिक धारणा है, जब लोग अपने घर के लिए खेतों से नई फसल लाते है तो अपनी खुशी और आनन्द को व्यक्त करने के लिए होली का त्यौहार मनाते हैं।
होलिकोत्सव केवल हिंदुओं ही नहीं, अपितु विश्व के समस्त मानवों का प्रथम नवीन वर्षोत्सव तथा शीत रक्षा कवच के रूप में भी देखा जा सकता है। होली पुराने वर्ष की विदाई और नए वर्ष के स्वागत का पर्व है । इसका संबंध आनंदोत्सव तथा मदनोत्सव से भी है । आदिम अवस्था में जबकि आदि मानव नंगे बदन जंगलों में गुफाओं में निवास करता था, जंगल में आग लगने के साथ होली का जन्म हुआ। पहले गुफा होली का जन्म हुआ। बाद में बस्ती बनने पर शीत से बचने के लिए वही गुफा होली प्रत्येक घर में अलावा (कौड़ा) के रूप में जलने लगी। अंत में जब शीत ऋतु बीत जाती है तो गांव भर की बड़ी होली जलाकर उसे विदा किया जाने लगा क्योंकि होली ने शीत से जीवन रक्षा की थी। अतः उसे होलिका माता कहा गया । अगली होली भी इसी होली की आग को घरों में सुरक्षित रखकर जलायी जाती रही। इस प्रकार करोड़ों वर्षों से वही होली की पवित्र आग अगली होली को जलाती रही । इसलिए अंग्रेजी में होली का अर्थ ही पवित्र होता है। वही दूसरे धार्मिक ग्रंथों के अनुसार देखें तो, होलिका दहन, हिन्दुओं का एक महत्वपूर्ण पर्व है, जिसमें होली के एक दिन पहले यानी पूर्व सन्ध्या को होलिका का सांकेतिक रूप से दहन किया जाता है। होलिका दहन बुराई पर अच्छाई की जीत के पर्व के रूप में मनाया जाता है। निष्कर्षात्मक शब्दों में कहें तो होली की लोकप्रियता या होली का धार्मिक बंधन से मुक्त होली का वैश्विक रूप में उत्सव शनैः-शनै: बढ़ रहा है।
लेखक
पुखराज प्राज