Tuesday, March 29, 2022

महिलाओं के संदर्भ में सामाजिक तंत्र की पृथक व्याख्या : प्राज / Separate explanation of social system with respect to women

 
                          (फेमिनिज्म)

महिला, लड़की स्त्री के विभिन्न नाम है इन्ही पर्यायों को छानकर देखने का प्रयास करते हैं। स्त्री शब्द का प्रयोग प्रकृति में महिला से लिए होता है। जिसमें यह स्वभाव वाचक शब्द प्रतीत है। नारी वह शब्द है जिसमें देवत्व का बोध होता है। यह महिला के लिए इंगित गुणवाचक शब्द है। वहीं महिला शब्द की प्रयोगशाला सामाजिक प्रस्थिति के लिए होता है, जो यह अधिकार वाचक बोध कराता है। औरत शब्द मजहबी मीनारों में उपयोगिता के लिए प्रायोजित है। जिसका अर्थ, यह उपभोग बोधक शब्द है। वहीं मादा शब्द की प्रासंगिकता जैविक तंत्र के अंतर्गत देखा जा सकता है। यह प्रजनन बोधक शब्द है। बात करें आंग्ल भाषा की तो अंग्रेजी में फीमेल महिला के लिए प्रयोग है जो संदर्भित प्रतीत होता है। वहीं वोमेन यानी पराधीनता, यह शब्द जिसका अर्थ है वाईफ ऑफ मेन, यह पराधीनत बोधक शब्द है।
              यह तो महिला शब्द के विभिन्न पर्यायों के विस्तार रहे। जिसमें उसे आदमी के परछाई के रूप में दर्शाया गया है। बड़ी विडम्बना यह है कि महिला के लिए क्या अन्य शाब्दिक परिभाषा नहीं है। पुरातन काल से लेकर प्रकृति के हर एक परिवर्तन में पुरूष और महिला दोनो ही चरों ने भाग लिया। पारिस्थितिक चुनौतियों का सामना किया, आदिम से सभ्यता की ओर बढ़े। लेकिन कहीं ना कहीं महिलाओं के लिए एक स्थान पीछे खिसकते ही रहा। जब राजशाही शासन की स्थितियां  संचालित रही तो, राज्य विस्तार के लिए राजकुमारी का विवाह संधि के पत्र के साथ भेट की रूप में दी जाने लगी। जब कहीं आक्रमण हुआ तो, हारे हुए राजा को और लज्जित करने के लिए इंसानियत को तारतार करते हुए विजयी राजा के द्वारा स्त्रियों के साथ बालात् दूर्व्यवहार किये जाते थे। शास्त्र और शास्त्रों से दूर भी तो पुरूषों ने किया था। जैसे केवल और केवल घर के चुला-चौका चलाने के लिए पैदा हुई हो।
                   समय के पहिए में चक्र चलते रहे, परिवर्तन के कई दौर पलते रहे। हम पुरातन से आधुनिक होते रहे। कभी गणिका, कभी सौन्दर्य, कभी कोठेवाली, कभी महफिलों की शान, कभी मार्केटिंग का समान बनाकर, आँखों से नग्नता तलाश करने वालों भूखे भेड़ियों के लिए महिलाओं को मुलायम गोस्त की तरह परोसा गया। पर कभी महिला के अधिकारों और उसकी सामाजिक स्थितियों को तलाशने की जहमत कौन उठाये? सोचने की बात तो छोड़ ही दिजीए जनाब क्योंकि सौ फीसदी में एक-दो फीसदी लोग निकलेंगे जो महिलाओं के लिए बिलो द बेल्ट नहीं सोचते वर्ना दुनिया तो महिलाओं के लिए हैवानों से भरी पड़ी है।
                     बहरहाल परिवर्तन तो होना निश्चित है। जिस प्रकार से किसी जलती वस्तु को बंद मुट्ठी से कितने देर तक पकड़ कर रख सकोगे। ठीक वैसे ही महिलाओं में सशक्तिकरण और अपने अधिकारों की लड़ाई में उनको खूद के लिए लड़ना पड़ा। अपनी स्थिति और वर्चस्वता को साबित करना पड़ा है। वर्तमान कई ऐसे क्षेत्र हैं जहाँ महिलाओं ने दस्तक देना प्रारंभ किया है। कई ऐसे क्षेत्र हैं जहां महिलाओं ने अपनी वर्चस्व बना ली है। अधिकारों की कानूनी लड़ाई तो संभव है महिलाओं के द्वारा जीत लिया गया है। लेकिन सामाजिक स्तर पर आज भी एक छद्म लड़ाई चल रही है। पुरूष प्रधान तबका आज भी महिलाओं को सामाजिक स्तर पर एक अलग ही माप तौल की तराजू से तौलता है। जो आज भी सामाजिक बैठकों से लेकर संस्कारों तक महिलाओं को पृथक्करण करने का प्रयास किसी ना किसी रूप में देखा ही जा सकता है। महिलाएं जागृत हुई है और फलन जल्द ही वे सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक एवं विधिक समस्त क्षेत्रों में पुरूषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर कार्य करेगी। उसे कोई सहायिकाओं में बल्की नायिकाओं का दर्जा प्राप्त होगा। 


लेखक
पुखराज प्राज
छत्तीसगढ़