Tuesday, March 29, 2022

रूढ़ीवाद बनाम समाजवाद के सुलगते सवाल : प्राज/ The burning question of conservatism vs socialism


                       (परिदृश्य
सामाजिक पारिस्थितिकी में बहुत से रिवाज़, परम्परा, संस्कृति, चर एवं अचर होना आवश्यक है। जैसे प्रत्येक समाज का इतिहास, उसके वर्तमान में घटित घटनाओं के पुरातन होने के साथ होता है। सामाजिक ताने-बाने के बीच एक आवश्यक और विस्तृत विषय को परिचर्चा के बीच लाने का प्रयास करता हूँ। वास्तव में कुछ पूर्वाग्रहों के बवंडरों से यह विचार बाहर आया की क्या प्रासंगिक तौर पर रूढ़ीवाद की अवस्थिति आज भी समाज में है। विचाराधीन तर्कों के मद्देनज़र किसी ना किसी रूप में रूढ़िवादी विचारधाराओं का प्रवाह हो रहा है। खासकर, समाज पिछड़े और आर्थिक स्थिति से कमजोर तबकों में सोदाहरण देखे जा सकते हैं। ऐसा तो बिलकुल नहीं है,केवल पिछड़े इलाकों में रूढ़ीवाद हो, शहरों के बीच गलियों में भी इसके प्रादुर्भाव और वर्तमान स्थिति में प्रासंगिक हो सकते हैं।
              वर्ष 2017 में सैंपल रजिस्ट्रेशन सिस्टम (एसआरएस) ने बाल मृत्यु दर पर देशभर की रिपोर्ट जारी की थी। इस रिर्पोट के अनुसार, राष्ट्रीय स्तर पर 3.9 फीसदी बेटियां मौत की शिकार होती हैं। रिर्पोट के अनुसार, दस साल में राष्ट्रीय स्तर पर बाल मृत्यु दर में 33.2 प्रतिशत की कमी आयी है। जिसमे चौकाने वाले ऑकड़े यह भी हैं की भ्रूणहत्या के लिए वनांचलों/ग्रामीण क्षेत्रों के दर शहरों की तुलना में कम है।  रूढ़ीवादी विचारों में बेटी की अपेक्षा बेटों को ज्यादा तर्जी दी जाती है। वहीं कन्या को बोझ से ज्यादा ऊपर नहीं समझा जाता है। 
                    रूढ़ीवाद एक ऎसी विचारधारा है, जिसमें व्यक्ति बिना तार्किकता और वैज्ञानिकता के केवल आस्था का अनुकरण करता है। पीढ़ी दर पीढ़ी समाजिक और राजनैतिक परंपरा का अनुसरण करता है। रूढ़ीवाद को बढ़ावा देने में सहायक रूप में सामाजिक परिस्थितियों एवं सामाजिक विचारकों, नेतृत्वकर्ता के अवैज्ञानिक और पूर्वाग्रहों के बंधनों के फलन होता है।
                  डेविड ह्यूम और एडमंड बर्क रूढ़िवाद के प्रमुख उन्नायक माने जाते हैं। समकालीन विचारकों में माइकेल ओकशॉट को रूढ़िवाद का प्रमुख सिद्धांतकार माना जाता है।राजनीतिक सिद्धांतकार जैसे कोरी रॉबिन रूढ़िवाद को मुख्य रूप से 'सामाजिक और आर्थिक असमानता की सामान्य रक्षा के संदर्भ में परिभाषित करते हैं।' 
                   नोएल ओ'सुल्लीवन द्वारा रूढ़िवाद को "मानव अपूर्णता का दर्शन" कहा गया है। जो इसके अनुयायियों के बीच मानव प्रकृति के नकारात्मक दृष्टिकोण और 'यूटोपियन' योजनाओं के माध्यम से इसे सुधारने की क्षमता के निराशावाद को दर्शाता है।  'यथार्थवादी अधिकार के बौद्धिक गॉडफादर', थॉमस हॉब्स ने तर्क दिया कि मनुष्यों के लिए प्रकृति की स्थिति 'खराब, बुरा, क्रूर और छोटा' है, जिसके लिए केंद्रीकृत अधिकार की आवश्यकता होती है।
              संकीर्ण मानसिकता के चलते कुछ लोग परिवर्तन इसलिए भी नहीं करना चाहते क्योंकि इससे उनके सामाजिक ढांचें पर साख और नियंत्रण खोने का भय रहता है। यदि रूढ़ीवाद की परम्परा का निर्वाह ना किया गया तो उन्हे लगता है। उसके बीना उनकी पूछपरख करने के लिए कोई श्वान भी ना रूकेगा। संभवतः ऐसे मानसिकता के धनि लोगों के हाथों में सामाजिक तंत्र की डोर होती है। जो समय बे-समय खलल उत्पन्न करते हैं। परंतु, वास्तविक में क्या रूढ़ीवादी कुरीतियों के महलों को ढ़हाने का वक्त नहीं आ गया है। वर्तमान समाज के नव पीढ़ी को यह विचार अवश्य करना चाहिए।तार्किक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण हो हमें कल की ओर अग्रसर करेंगें वर्ना रूढ़ीवादी विचारधाराओं के बवडंर हमें गर्त की ओर ले जाने के लिए काफी है। 


लेखक
पुखराज प्राज
छत्तीसगढ़