Tuesday, March 29, 2022

आदिम से सभ्यता और समाजशास्त्र तक की दौड़ : प्राज / The race from primitive to civilization and sociology



                            (परिदृश्य)

मनुष्य यानी होमो-सेपियन्स 65 हजार वर्ष पूर्व पृथ्वी पर विकसित हुए थे। अफ्रीका महाद्वीप से पनपी यह विशेष आदिम प्रजाति मानव अपने प्रारंभिक पीढ़ीयों में खानाबदोश और पूर्णतः वनवासी था। जिसने धीरे-धीरे अपने आप को विकसित करना सीखा। सीखने के इसी क्रम में आदिम या आदिमानवों में क्रांतिकारी खोज रही आग की। आदिमानवों में झुंड और एक साथ रहने की परम्परा उनके संरक्षण और दल की मजबूतीकरण के लिए सहायक हुए। जिसके चलते समूह के लोगों के प्रति लोगों में अनभिज्ञता ही सही लेकिन प्रेम और एकता सांकेतिक रूप में अवस्थित रही। साथ में शिकार करते, मिल बाटकर भोजन करते अनायास ही सही लेकिन आदिम समाज की अवधारणा यहां पर प्रदर्शित होती है। चक्रण युहीं चलते गया, वो पहले एकत्र हुए फिर, स्तरों में सुधार हुआ। इसके पश्चात वे स्तरों को और उत्कृष्ट बनाने के प्रयास में जिज्ञासु और खोजी प्रवृत्ति के विकास करने में उत्कृष्ट हो गए। इस दौर के पश्चात, वह दौर आया जहां वे अच्छे से बेहतर और बेहतर से बेहतरीन की सीढ़ी की ओर बढ़ने लगे।
             मेसोपोटामिया सभ्यता सबसे प्राचीन मानव सभ्यताओं में से एक है। जिसे सुमेरियन सभ्‍यता के रूप में भी जाना जाता है, यह अब तक मानव इतिहास में दर्ज सबसे प्राचीन सभ्यता है। मेसोपोटामिया नाम ग्रीक शब्द मेसोस से लिया गया है, जिसका अर्थ है मध्य और पोटामोस, जिसका अर्थ है नदी। मेसोपोटामिया यूफ्रेट्स और टाइग्रिस नदियों के बीच में स्थित एक जगह है जो अब इराक का हिस्सा है। यह सभ्यता प्रमुख रूप से अपनी समृद्धि, शहरी जीवन, विशाल साहित्य, गणित और खगोल विज्ञान के लिए जाना जाता है। उरुक के शुरुआती शासकों में से एक, एनमेरकर के बारे में एक लंबी सुमेरियन महाकाव्य कविता में यहां के शहरी जीवन, व्यापार और लेखन और उपब्धियों के बारे में विस्तृत वर्णन किया है। 
            भारतवर्ष में सिंधु और हड़प्पा सभ्यता के अवशेष आज भी अतीत के रहस्यों को उजागर करते हैं। हम बात कर रहे हैं मानवों के उत्थान के स्तर के साथ समाज की कल्पना और समाज का वैज्ञानिक स्वरूप में अध्ययन के लिए विषय के रूप में संगठन के उत्पत्ति के कारण एवं अवस्थाओं के विषय में। सिंधु और हडप्पा संस्कृति में विशेष कर सिविलाइज्ड कॉलोनियों के प्रमाण मिलते हैं। 6500 ईसा पूर्व के बाद, खाद्य फसलों और जानवरों के वर्चस्व के लिए सबूत, स्थायी संरचनाओं का निर्माण और कृषि अधिशेष का भण्डारण मेहरगढ़ और अब बलूचिस्तान के अन्य स्थलों में दिखाई दिया। ये धीरे-धीरे सिंधु घाटी सभ्यता में विकसित हुए, दक्षिण एशिया में पहली शहरी संस्कृति, जो अब पाकिस्तान और पश्चिमी भारत में 2500-1900 ई.पू. के दौरान पनपी। इस दौर में समाज की अवधारणा, महत्व और प्रासंगिकता के विषय में लोग समझ गए थे।
          समाज के गठनोपरांत, आधुनिक युग में समाज पर आधारित अध्ययनों की शाखा को समाजशास्त्र कहते हैं। बाटोमोर के अनुसार, 'समाजशास्त्र एक आधुनिक विज्ञान है जो एक शताब्दी से अधिक पुराना नहीं है। वास्तव में अन्य सामाजिक विज्ञानों की तुलना में समाजशास्त्र एक नवीन विज्ञान है।' एक विशिष्ट एवं पृथक विज्ञान के रूप में समाजशास्त्र की उत्पत्ति का श्रेय फ्रांस के दार्शनिक आगस्त काम्टे को है। जिन्होंने सन 1838 में समाज के इस नवीन विज्ञान को समाजशास्त्र नाम दिया । तब से समाजशास्त्र का निरंतर विकास होता जा रहा है। लेकिन यहां यह प्रश्न उठता है कि क्या आगस्त काम्टे के पहले समाज का व्यवस्थित अध्ययन किसी के द्वारा भी नहीं किया गया । इस प्रश्न के उत्तर के रूप में यह कहा जा सकता है कि आगस्त काम्टे के पूर्व भी अनेक विद्वानों ने समाज का व्यवस्थित अध्ययन करने का प्रयत्न किया लेकिन एक स्वतंत्र विज्ञान के रूप में समाजशास्त्र अस्तित्व में नहीं आ सका।
                 भारतीय उपनिषदों, वेदों और महाकाव्यों में वर्णित समाज की व्यवस्था से लेकर वर्तमान भारतवर्ष के महान समाज प्रेमी मनु की मनुस्मृतियों में समाज के विभिन्न क्षेत्रों का वर्णन, प्रथा, संस्कृति, संरचना, व्यवस्था इत्यादि का लेखन तो वर्षो पूर्व हो गया था। लेकिन पेटेंट या अपने नाम पर क्रेडिट सिस्टम के उन्होंने अपने नाम करने के बजाय दर्शन के लिए लोगों के बीच अमृत कलश स्वरूप जनमानस और समाज को समर्पित कर चले गए। 


लेखक
पुखराज प्राज
छत्तीसगढ़