(अभिव्यक्ति)
नगरीकरण के दौर में सिर्फ मकान बसने लगे हैं शहरों में और गांवों में घरों की संख्या जल्द ही मकान बनने को आमादा है। वर्तमान दौर जिसे हम आधुनिकता का दौर करते हैं, उससे अधिक यह महत्वकांक्षा और आवश्यकता का दौर बनने की ओर अग्रसर है। सांसारिक विषयों में लब्ध मनुज स्वयं के स्तर में संवर्धन के लिए किसी और के सिर का सहारा लेने में कोई कोताही नहीं दिखाता है। जहाँ भौतिक लोभ, और भवसागर के प्रति निष्ठा उसे मिथ्या की ओर ले जा रही है।
चार प्रसिद्ध युगों में सतयुग या कृतयुग प्रथम माना गया है। इस युग में ज्ञान, ध्यान या तप का प्राधान्य था। प्रत्येक प्रजा पुरुषार्थसिद्धि कर कृतकृत्य होती थी, अत: यह 'कृतयुग' कहलाता है। धर्म चतुष्पाद (सर्वत: पूर्ण) था। मनु का धर्मशास्त्र इस युग में एकमात्र अवलंबनीय शास्त्र था।
इसके पश्चात त्रेतायुग, जो सत्य और मिथ्या के बीच रेखा खींचती प्रमुख युग है। जहां वचनों की गरिमा और वचनों के लिए धर्मपरायण रहने की पराकाष्ठा का काल रहा है।
इसके पश्चात द्वापर युग, जो इस युग का गाथाओं में बुराई पर अच्छा की जीत और अनिष्ट चाहे कितना विशाल क्यों ना हो, सच्चाई की छोटी सी लौ भी उसे ढहाने के लिए काफी होती है। बहरहाल, आपको जिस चीज़ की अनुभूति होती है, आप वहीं जानते हैं, बाकी सब तो बकवास है। भले ही कोई चीज मेरे द्वारा कही हो, भगवान द्वारा कही गई हो या फिर पुराणों या ग्रंथों में बताई गई हो, लेकिन ये सारी चीजें तब तक व्यर्थ हैं, जब तक आप इन्हें खुद अपने बोध या अनुभूति से नहीं जान लेते हैं।
प्रत्येक युग में परम पिता परमेश्वर महाकाल देवाधिदेव महादेव किसी ना किसी रूप में अवश्य आये हैं। क्योंकि लोगों में सच, निष्ठता, धर्म परायणता एवं दार्शनिकता का बोध था। लेकिन वर्तमान कलियुग का मानव, मोह और विषयों की पूर्ति की कल्पना में अंधा हो गया है। वह लोगों को इसलिए नहीं जनता की वे लोग का परिचय, रिश्तों या फिर समुदाय का है। बल्कि लोगों को इसलिए जानता है, क्योंकि उससे उसकी आवश्यकताओं की पूर्ति होने की संभावना होती है। छल वह स्वयं से, औरों से और सभी से करता रहता है। वर्तमान दौर में विचारधाराओं और विषयों के सांसारिक सागर मंथन से निकले विष का पान आखिर कौन करेंगे। प्रश्न उठता है की क्या महादेव इस कलियुग में आयेंगे।
लेखक
पुखराज प्राज
छत्तीसगढ़