Thursday, February 3, 2022

क्यों मर्ज हो, अच्छा है उससे पहले स्वच्छ हों : प्राज / Why be sick, it is better to be clean before that: Praj




विचारणीय विषय तो यह है जनाब की लोकतंत्र की व्यवस्था में यदि पवित्रता है, तो निश्चय ही इसके बागडोर को संभालने वालों के कार्यप्रणाली में भी पवित्रता आवश्यक है। हम बात करते हैं अवरोधों की, हम बात करते हैं विरोधियों की, जबकि यह तो इंस्टेंट प्रेजेंटेशन है। वास्तव में हमें कारण और  कारक की तलाश करनी चाहिए। जैसे मार्क्सवाद क्रांतिकारी समाजवाद का ही एक रूप है। यह आर्थिक और सामाजिक समानता में विश्वास रखता है अत: मार्क्सवाद सभी व्यक्तियो की समानता का दर्शन है। मार्क्सवाद की उत्पत्ति खुली प्रतियोगिता स्वतंत्र व्यापार और पूंजीवाद के विरोध के कारण हुई। मार्क्सवाद पूंजीवाद व्यवस्था को आमलू रूप से परिवर्तित करने और सर्वहारा वर्ग की समाजवादी व्यवस्था को स्थापित करने के लिये हिंसात्मक क्रांति को एक अनिवार्यता बातलाता है इस क्रांति के पश्चात ही आदर्श व्यवस्था की स्थापना होगी वह वर्गविहीन संघर्ष विहीन और शोषण विहीन राज्य की होगी।
             अब बात करते हैं, वर्तमान में व्याप्त भारतवर्ष में भ्रष्टाचार की 21 दिसम्बर 1963 को भारत में भ्रष्टाचार के खात्मे पर संसद में हुई, बहस में डॉ राममनोहर लोहिया ने जो भाषण दिया था वह आज भी प्रासंगिक है। उस वक्त डॉ लोहिया ने कहा था सिंहासन और व्यापार के बीच संबंध भारत में जितना दूषित, भ्रष्ट और बेईमान हो गया है उतना दुनिया के इतिहास में कहीं नहीं हुआ है। ऐसा भी नहीं है की भ्रष्टाचार के निषेध के लिए कानून नहीं बने, इस संदर्भ में भ्रष्टाचार विरोधी अधिनियम -1988, सिटीजन चार्टर, सूचना का अधिकार अधिनियम - 2005, कमीशन ऑफ इन्क्वायरी एक्ट बनाए गए है। इसके बाद लोकपाल भी पारित हुआ। लेकिन फिर भी भ्रष्टाचार बोध सूचकांक में वर्ष 2015 के रैंकिंग में भारत 79 वे स्थान पर है। यह एक विचारणीय विषय है।
            चुकि भ्रष्टाचार आज भी व्याप्त है। 1965-66 में नक्सलबाड़ी क्षेत्र में कम्युनिस्टों का पहले से ही नियंत्रण था। तथाकथित सिलीगुड़ी समूह ने एक सशस्त्र संघर्ष शुरू करने का आह्वान किया, जिसने विद्रोह शुरू किया। पूरे क्षेत्र में कई किसान प्रकोष्ठ बनाए गए थे। ऐसे ही आंदोलनों में सम्मिलित लोगों में सरकार और सिस्टम के प्रति घोर विरोध और कट्टर टकराव की विचारधारा के फलन नक्सल संगठनों का उदय हुआ। अब आप कहेंगे की नक्सल संगठन और हिंसा का कहीं समर्थन तो नहीं कर रहे। तो मैं यह सुनिश्चित करना चाहता हूँ कि मैं किसी लेफ्ट या राईट विचारधारा से नहीं अपितु, सर्वे भवन्तु सुखिनः की भावना से ओतप्रोत भारतवर्ष का एक नागरिक की हैसियत से यह विचार प्रस्तुत कर रहा हूँ। ऐसे ही संगठनों के प्रणेताओं ने लोकतान्त्रिक व्यवस्था में हिंसा के साथ विध्वंस मचा रखा है। ऐसा भी नहीं है की इन संगठनों में सभी सिस्टम के सताए लोग संघठित हुए। बल्कि ऐसे भी लोगों हैं जो स्वयं भ्रष्टाचार से लड़ते -लड़ते भ्रष्ट हो गए। बहरहाल, हमारा प्रयास मर्ज की दवा करने तक सीमित ना रहते हुए। स्वच्छता का प्रसार करना चाहिए, जिससे इस 135 करोड़ जनसंख्या वाले विशाल भारतीय उपमहाद्वीप में कभी नक्सलवाद जैसे विकृतियों निर्माण ही असंभव हो। 


लेखक
पुखराज प्राज
छत्तीसगढ़