Thursday, February 3, 2022

छत्तीसगढ़ी मोर पहिचान, मोर स्वाभिमान : प्राज / Chhattisgarhi my identity, my self respect


                                (बिचार)
जनम ले के बाद मनखे जोन पहिली भाखा या बोली ल सिखथे,जानथे अऊ समझथे, उही ओखर पेड़ी भाखा होथे।जइसे मोर जनम छत्तीसगढ़ के पावन भुइँया म होये हे। त मोर माई भाखा छत्तीसगढ़ी होइस। महात्मा गांधी जी भाखा के संदर्भ म कहिन कि हिरदे के कोनो भाखा नइ होवय। मनखे हिरदे ले हिरदे के गोठ करथे,हिन्दी हमर राष्ट्र के भाखा हरे। अऊ राष्ट्र भाखा के बिना राष्ट्र हर कोंदा कहिलाथे। 
                ठीक उसने राजकीय भाखा ला समझे के परियास करथन। जोन राज म उँहा के बोली/भाखा के मान अऊ चलन नइ होय,त ओ राज के कल्पना कर सकत हव ओखर बानी घलो कोंदा बागिर हो जथे। राज के भाखा हर राज्य म रहइया मनखे के, समाज के, संस्कृति के पहिचान हरै। 
         भाखा बैज्ञानी बलार्ड हर इही संदर्भ म कहिथे, दई-बाबु से सुने, सीखे भाखा/बोली ल मातृभाखा के दर्जा दे सकत हन। जोन भाखा ल ओ छेत्र के समाज हर मानक मानथे उही उहाँ के प्रधान माने माई भाखा होना चाही।
               हमर छत्तीसगढ़ी संग जुड़ाव तो हे, छत्तीसगढ़ी उपर हमन गरब भी करथन। फेर बोलचाल के बेरा, अन्य भाखा ल साधन बनाके अपन-आप ल होसियार समझे के बड़का भूल कर बईठथन। जम्मों छत्तीसगढ़िया मन ल, सबले पहिली ये गोठ गांठ बांधें ल परही की, जोन अपन संस्कृति, बानी अऊ इतिहास के ऊपर गरब नइ करे। संरक्षण अऊ प्रचलन बर परियास नइ करे त वो दिन दूर नइ हे जब जम्मों नंदा जही। हमला तो ये बिचार करना पढ़ही,हम छत्तीसगढ़िया हरन। हमर संस्कृति, हमर लोक परम्परा अऊ गुरतुर गोठ के राज भाखा छत्तीसगढ़ी ल मस्तक के चंदन बनाना पड़ही। चाहे गांव के खोर हो, चाहे शहर के चमकत सड़क। कुरिया के भितर होवय,चाहे कोन्हों कार्यालय जम्मों जगह, छत्तीसगढ़ी के परियोग हमर ध्येय होना चाही। तभे हम छत्तीसगढ़िया कहलाये के लायक बनबोन। अइस तो कभू नइ होना चाही कि चार के भीड़ में अपन भाखा म गोठियाय म लाज मरन। हमर डोकरी दई हमेसा कहे जोन करथे सरम-तेकर फूटे करम। हमला छत्तीसगढ़ी ल अऊ गुरतुर बनाना हे,लोगन तक पहुचाना हे। जम्मोंझन मिलके ये प्रयास करन की हमर भाखा अतेक समृद्ध होवय की दूसर राज के मनखे तको, छत्तीसगढ़ियाँ सबले बढ़िया कहे अऊ छत्तीसगढ़ी के आगु माथ नवाय।


लेखक
पुखराज प्राज
फिंगेश्वर(छत्तीसगढ़)