Wednesday, February 2, 2022

जो कहूँगा, सच कहूँगा और निष्पक्ष कहूँगा....!!! : प्राज / Whatever I will say, I will tell the truth and I will say fair.....!!!


                         (राष्ट्रवाद)

मूल संविधान में सात मौलिक अधिकार थे, लेकिन 44वें संविधान संशोधन के द्वारा संपत्ति का अधिकार को मौलिक अधिकार की सूची से  हटाकर इसे संविधान के अनुच्छेद 300(ए) के अन्तगर्त क़ानूनी अधिकार के रूप में रखा गया है। अब आप कहेंगे की मौलिक अधिकारों की बात हम क्यों कर रहे हैं या इसकी विवेचना क्यों? मेरे लिए संविधान सर्वोपरि है। मैं पूरे सच्चे मन से संविधान को आत्मसात् करता हूँ। हम भारत के नागरिक जो एक लोकतांत्रिक गणराज्य हैं। जहाँ जनता का शासन और संविधान से क्रियान्वयन होता है। मेरा विषय संविधान के प्रति प्रश्न खड़ा करना नहीं। अपितु, उस वर्ग के लोगों के प्रति आपका ध्यानाकर्षण चाहता हूँ जो अपने मौलिक अधिकारों को जानते नहीं, जानते हैं तो लाभान्वित नहीं और लाभान्वित हैं भी तो तिरस्कार के तवे में आड़े हाथों तल दिये जाते हैं।
                 समता या समानता का अधिकार जिसका उल्लेख संविधान अनुच्छेद 14 से अनुच्छेद 18 में हैं। जिसके अंतर्गतगत् लोगों को समान अधिकार प्राप्त है। लेकिन कुछ ऐसे भी पिछड़े, शोषित और मुख्यधारा से भिन्न लोग भी हैं। जिन्हे आज भी अपने इस अधिकार के संदर्भ में कोई जानकारी नहीं है। वहीं समानता के लिए परस्पर लोगों में अति प्रदर्शन भी सामाजिक स्थिरता को चुनौती देती है।
            स्वतंत्रता का अधिकार जिसका उल्लेख संविधान के अनुच्छेद 19 से अनुच्छेद 22 में है। लेकिन क्या इस अधिकार से सबको स्वतंत्रता है? आज भी नारी को पुरूषों के वर्चस्व वाले क्षेत्रों में संघर्ष करना पड़ रहा है। आज भी पूँजीवादी विचारधारा के लोग, अपने वर्कर्स को भेड़ बकरियों और गुलाम ये कम नहीं समझते। आज भी कागजी समानता के नाम पर सवार कई लोग हैं। जिन्हें अधिकार तो प्राप्त हैं लेकिन, धनाड्य लोगों की जी हूजूरी करना ही अपनी स्वतंत्रता का पर्याय समझते हैं। 
        शोषण के विरुद्ध अधिकारों के संदर्भ में सविधान के अनुच्छेद 23 से 24 में उल्लेख है। यह अधिकार जहाँ शोषण से मुक्ति देता है। लेकिन आज भी समाज में कभी दहेज के नाम पर, कभी काम के नाम पर, कभी रोजी रोटी से हाथ धो बैठने कारण लोग आज भी शोषण का शिकार हो रहे हैं। समस्या तो यह है कि कई ऐसे भी हैं जिनको अपने अधिकारों की समझ तो है, लेकिन अधिकारों का हनन हो तो, उसके विरूद्ध आवाज उठाने की हिम्मत नहीं है। 
            धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार, संविधान के अनुच्छेद 25 से 28 में उल्लेख है कि भारत में निवासित समस्त लोगों को अपनी धार्मिक स्वतंत्रता है। लेकिन विडम्बना यह भी है की स्वतंत्रता का यह अर्थ निकालना की जिस दिन मेरा पर्व है, मेरा दिवस है, या कोई आयोजन उस दिन किसी अन्य धर्म के अनुयायिओं की उपेक्षा करना, या क्रमशः अवक्षेपण करना, या द्वेष की भावना रखने की भावना के दुष्प्रचार के रूप में धार्मिक हिंसा भड़क उठते हैं। इसके उदाहरण यथासंभव है अखबारों के सुर्खियों में आप देख सकते हैं। 
                 संस्कृति और शिक्षा संबंधी अधिकार, संविधान के अनुच्छेद 29 से 30 में उल्लेखित है। शिक्षा, जो व्यक्ति में समझ और दायित्व के प्रति सजगता प्रदान करती है। आज भी भारतवर्ष में शिक्षा का प्रसार एक चुनौती हैं। कई योजनाओं का क्रियान्वयन हुआ, कुछ लाभांश भी दिखे, यदाकदा तो कागजी कार्रवाई में सिर्फ संख्याओं को शिक्षा दी गई। प्रेरक, प्रौढ़ शिक्षा, संध्या शाला, रात्रि शाला, स्ट्रीट क्लास न जाने कितने नाम से योजनाएं बनी, चली और फिर अतित हो गई। लेकिन धरातल पर केवल कुछ प्रतिशत को वास्तविक लाभ हुआ। बांकि तो योजना भ्रष्टाचार के तपन में उष्ण होकर भाप बनने में देर कैसे हो सकता है।
               छठा, संवैधानिक उपचारों का अधिकार , डॉ॰ भीमराव अंबेडकर जी ने संवैधानिक उपचारों के अधिकार (अनुच्छेद 32-35) को 'संविधान का हृदय और आत्मा' की संज्ञा दी । सांवैधानिक उपचार के अधिकार के अन्दर ५ प्रकार के प्रावधान  क्रमशः बन्दी प्रत्यक्षीकरण, परमादेश, निषेधाज्ञा, अधिकार पृच्छा, उत्प्रेषण रिट हैं। बहरहाल मौलिक अधिकार हैं, उससे भी बड़ी बात दुनिया का सबसे बड़ा और सशक्त संविधान हमारे पास है। केवल लोगों में सूचना का प्रसार नहीं है। इसका कारण है, शिक्षा का प्रसार कम है। इस गणतंत्र हम सभी मिलकर लोगों में जागरूकता लाने का प्रयास तो अवश्य ही कर सकते हैं। अपने अधिकारों के प्रति भारतवर्ष का प्रत्येक नागरिक जितना सजग होगा। उतना ही सबल हमारा राष्ट्र होगा। 

लेखक
पुखराज प्राज
छत्तीसगढ़