भारतवर्ष एक लोकतांत्रिक गणराज्य है। जहाँ जनता का, जनता के द्वारा, जनता के लिए शासन व्यवस्था संचालित है। साथ ही दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र भारतवर्ष है। हम बात कर रहे हैं लोकतंत्र की, जिसे जनता का शासन भी कह सकते हैं। इसे लिण्सेट की परिभाषा के अनुसार, 'लोकतन्त्र एक ऐसी राजनीतिक प्रणाली है जो पदाधिकारियों को बदल देने के नियमित सांविधानिक अवसर प्रदान करती है और एक ऐसे रचनातंत्र का प्रावधान करती है। जिसके तहत जनसंख्या का एक विशाल हिस्सा राजनीतिक प्रभार प्राप्त करने के इच्छुक प्रतियोगियों में से मनोनुकूल चयन कर महत्त्वपूर्ण निर्णयों को प्रभावित करती है।' वहीं मैक्फर्सन ने लोकतन्त्र को परिभाषित करते हुए इसे ‘एक मात्र ऐसा रचनातन्त्र माना है जिसमें सरकारों को चयनित और प्राधिकृत किया जाता है अथवा किसी अन्य रूप में कानून बनाये और निर्णय लिए जाते हैं।'
कहने का सार तत्व यह है की, लोकतंत्र में जनता सर्वोपरि है। जहाँ जनता के द्वारा चुने गए प्रतिनिधित्व मंडल के द्वारा शासन व्यवस्था निर्धारित होती है। यहाँ पर गौर करने वाली बात यह भी है की जनता, अपने ऊपर शासन के लिए जनमत के समर में प्रमुख के रूप में भाग लेती है। 1961 में अमेरिकी राजनीतिक वैज्ञानिक वीओ की ने जनता की राय को 'निजी व्यक्तियों द्वारा आयोजित राय के रूप में परिभाषित किया, जिसे सरकारें ध्यान देने के लिए विवेकपूर्ण समझती हैं।' ठीक उसी प्रकार चुनाव के दौरान जनता से मत लिया जाता है की आप, अपने ऊपर शासन चलाने के लिए किसका चयन करना चाहते हैं। जहाँ विभिन्न राजनैतिक पार्टियों से उम्मीदवार या गैर पार्टीगत् या निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में इच्छुक जनता मे से ही एक चुनाव में भाग लेते हैं। फिर जनमत के अनुसार ही ज्यादा मत या ज्यादा उम्मीदवारों की संख्या के आधार पर शासन व्यवस्था के संचालन के लिए 5 वर्षों के लिए शासन व्यवस्था निहित होती है। या दूसरे शब्दों में कहें तो बहुमत हासिल पार्टी को जनता, शासन की चाबी देती है।
पक्ष- विपक्ष इत्यादि विभिन्न व्यवस्था निर्धारित होती हैं। बहरहाल, मेरा विषय लोकतंत्र या लोकतंत्र में शासन व्यवस्था की ओर नहीं है। अपितु जैसे हाथ की पांचों उंगलियाँ बराबर नहीं होती है। ठीक वैसे ही लोकतंत्र के शासित क्षेत्र के अंदर ही कुछ ऐसे विचारधाराओं के लोग भी होते हैं जो लोकतंत्र में थोड़े कम विश्वास रखते हैं।
एक ऐसी ही विचारधारा है नक्सलवाद। नक्सलवाद साम्यवादी क्रान्तिकारियों के उस आन्दोलन का अनौपचारिक नाम है जो भारतीय कम्युनिस्ट आन्दोलन के फलस्वरूप उत्पन्न हुआ। नक्सल शब्द की उत्पत्ति पश्चिम बंगाल के छोटे से गाँव नक्सलबाड़ी से हुई है जहाँ भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी के नेता चारू मजूमदार और कानू सान्याल ने 1967 मे सत्ता के विरुद्ध एक सशस्त्र आन्दोलन का आरम्भ किया। कहने तात्पर्य है की ये ऐसे विचारधारा का समर्थन करते हैं जो लोकतंत्र में विश्वास नहीं रखते और हिंसा के माध्यम से अपनी मांगों को अमल में लाना चाहते हैं। चूँकि विद्रोह तो हैं जिसे शासन के द्वारा दबाने का प्रयास भी किया गया। इसी के तहत स्टीपेलचेस अभियान वर्ष 1971 में चलाया गया। इस अभियान में भारतीय सेना तथा राज्य पुलिस ने भाग लिया था। अभियान के दौरान लगभग 20,000 नक्सली मारे गए थे। ग्रीनहंट 2009, प्रहार 2017 अभियान क्रमशः है। एक ओर जहाँ जनता के द्वारा, जनता के लिए, जनता के शासन में ऐसे विचारधाराओं के लोगों के टकराव से जनता का ही नुक्सान होता है। इसके पीछे केवल विरोध करने वाले नहीं बल्कि लोकतंत्र के पवित्र मंदीर में शासन व्यवस्था के संचालन में नियुक्त प्रतिनिधित्व के भ्रष्टाचार, शोषण की नीति एवं ब्योरोक्रेसी में तानाशाही जनता के चयनित शासन व्यवस्था के द्वारा, जनता के हितों का क्षरण होना भी इसके परिचायक हैं। जनता को जागृत होना होगा, जनता को अपने लोकतान्त्रिक अधिकारों और सशक्त होना होगा। तब जाकर ही हम निर्बाध और सशक्त लोकतंत्र को आत्मसात कर पायेंगे। वरना, विचारधाराओं के टकराव में जनता को ही नुक्सान सदैव उठाना पड़ेगा।
लेखक
पुखराज प्राज
छत्तीसगढ़