Friday, January 21, 2022

प्रदर्शन के दर्शन से होने वाली मरीचिका, प्रेम नहीं है : प्राज / The merriment caused by the vision of performance is not love : Praaj


                           ( अभिव्यक्ति  )

ऐसा तो नहीं की परिवर्तन ना हुआ हो। सभ्यता के अद्यतन होने के साथ-साथ मनुष्यों के रहन- सहन में परिवर्तन होते रहे हैं। वर्तमान में पाश्चात्य के वेशभूषाओं का चलन पूरे विश्व में चला है। हम और आप फिर इसके अछुते कैसे रह सकते हैं। कुछ लोगों में एक अजीब विचारधारा का अंधानुकरण हो रहा है। वे अपने आप को 'कुल' या 'मार्डन' होने की संज्ञा तक देने से परहेज नहीं करते हैं। चाहे 'कुल' या गुड लुक्स के फिराक में अर्धनग्नता ही क्यों ना ओढ़ ली हो। मैं विरोध तो कसम से कभी नहीं करता और ना ही करना चाहता हूँ। मेरा विचार है कि यह उनका परिपक्वता और उनकी आजादी है। कुछ ऐसे मानसिकता के धनी भी होते हैं जो अपने आप को ऐसे कपड़ों में ज्यादा आकर्षक और बोल्ड समझते हैं।
              कुछ ऐसे भी होते हैं जो ऐसे अर्धपारगम्य वेशभूषा में लिप्त प्राकृतिक शारीरिक बनावट के दर्शानाभिलाषी भी होते हैं। जरूर ये नहीं की कोई व्यक्ति विशेष ही अपनी रूचि रखे, कदरदान ना हो तो फिर प्रदर्शन का क्या फायदा भला? तनिक विचार तो करके देखें, यदि ऐसे फैशन ट्रेंड को बढ़ावा देने वाले नहीं मिलते तो जरूरी नहीं की छोटे होते कपड़ो की परिधि जरा भी बढ़ पाती। बहरहाल, पहले मनुष्य आदिम था, आदिमानव कहलाता था। उसी का संकरित स्वरूप में ये मार्डन आदिमानव कहना ज्यादा अच्छा लगेगा।
             कुछ लोगों को छोटी कमीज के और बाहर झाँकते अंगों की मरीचिका में आकर्षित होने और आकर्षित करने दोनो का भी बोध होता है। कुछ लोग भौतिक अंगों के खजुराहों के शिल्प के भातिं अंग प्रदर्शन कर कामवासना को उद्भेदित करने की भावना के प्रेम की संज्ञा देना मुझे न्यायोचित नहीं लगता है।
                 'आई एम हॉट', 'यू टू हॉट' या फिर 'लूक लाईक बोल्ड' ये सारे कथन भौतिक प्रदर्शन के लिए निमित्त हो तो ठीक है। लेकिन आप ऐसे दिखते हैं इसलिए मुझे प्रेम है ये शाब्दिक प्रयोग कहीं ना कहीं प्रेम के वास्तविक को धुमिल करता है। जबकि वह केवल और केवल शारीरिक आकर्षण के कारण मानसिक मवाद बस है। जहाँ प्रेमी अपने आप को एस्ट्रोनॉट और प्रेमिका को चांद समझने की भूल करता है। चांद पर कदम रखने की आरजू में न जाने कितने सीमाओं को तोड़ बैठता है। यह केवल और केवल आकर्षण का पर्याय है। प्रेम रूपी पवित्र अमृत नहीं अपितु, शारीरिक सुख के पीछे भागते मृग की कामवासना की पृष्ठभूमि है। जबकि प्रेम तो शाश्वत है जो शारीरिक से कहीं आत्मा को स्पर्श करना अपना लक्ष्य मानता है। 

लेखक
पुखराज प्राज
छत्तीसगढ़