( अभिव्यक्ति )
भारतवर्ष, विश्व का सबसे बड़े गणतंत्र है। गणतंत्र का पर्याय हम तलाशने का प्रयास करते हैं जिसमें, वह शासन प्रणाली जिसमें प्रमुख सत्ता लोक या जनता अथवा उसके चुने हुए प्रतिनिधियों या अधिकारियों के हाथ में होती है और जिसकी नीति आदि निर्धारित करने का सब लोगों को समान रूप से अधिकार होता है।
गणतंत्र शब्द के इतिहास को खंगालने का प्रयास करते हैं तो, मध्ययुगीन उत्तरी इटली में कई ऐसे राज्य थे, जहां राजशाही के बजाय कम्यून आधारित व्यवस्था थी। सबसे पहले इतालवी लेखक गिओवेनी विलेनी (1280-1348)ने इस तरह के प्राचीन राज्यों को लिबर्टिस पापुली (निर्बंध लोग)कहा, उसके बाद 15वीं शताब्दी में पहले आधुनिक इतिहासकार माने जाने वाले लियोनार्डो ब्रूनी (1370-1444) ने इस तरह के राज्यों को 'रेस पब्लिका' नाम दिया। लैटिन भाषा के इस शब्द का अंग्रेजी में अर्थ है- पब्लिक अफेयर्स (सार्वजनिक मामले)। इसी से रिपब्लिक शब्द की उत्पत्ति हुई है। वर्तमान में दुनिया के 206 संप्रभु राष्ट्रों में से 135 देश आधिकारिक रूप से अपने नाम के साथ 'रिपब्लिक' शब्द का इस्तेमाल कर रहे हैं।
गणतंत्र , सरकार का वह रूप जिसमें एक राज्य नागरिक निकाय के प्रतिनिधियों द्वारा शासित होता है। आधुनिक गणतंत्रों की स्थापना इस विचार पर की गई है कि संप्रभुता लोगों के साथ टिकी हुई है, हालांकि जिन्हें शामिल किया गया है और लोगों की श्रेणी से बाहर रखा गया है, उनके इतिहास में विविधता है। क्योंकि नागरिक स्वयं राज्य पर शासन नहीं करते हैं, लेकिन प्रतिनिधियों के माध्यम से गणराज्यों को प्रत्यक्ष लोकतंत्र से अलग किया जा सकता है , हालांकि आधुनिक प्रतिनिधि लोकतंत्र बड़े और गणतंत्र हैं।
भारतवर्ष जो विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्रिक गणराज्य है। यानी यहाँ लोकतंत्र और गणतंत्र दोनो की अवस्थिति है। जहाँ लोकतंत्र को अब्राहम लिंकन ने कहा है की 'लोकतंत्र जनता का, जनता के लिए, और जनता के द्वारा' की जाने वाली शासन ही जनता का शासन यानि लोकतंत्र कहलाता है। वहीं गणतंत्र एक ऐसी शासन प्रणाली होती है जहाँ जनता राज्य के सर्वोच्च पद पर आसीन होने वाले व्यक्ति को चुनती है। गणतंत्र राज्य में सर्वोच्च पद पर आसीन होने वाला व्यक्ति वंशानुगत नहीं होता है अपितु उसे जनता द्वारा चुना जाता है।
बहरहाल, मेरा उद्देश्य केवल गणतंत्र या लोकतंत्र के बीच संकीर्ण रेखा खींचना नहीं है। अपितू, मेरा लक्ष्य है गणतंत्र/लोकतंत्र में जनता ही सर्वोच्च है, जनता ही प्रधान है और जनता के मत से ही शासन व्यवस्था सुनिश्चित होती है। यहाँ तक यदि आप मेरा समर्थन करते हैं तो एक आम आदमी/जनता के स्वतंत्र होने के भाव या गणतंत्र की प्राथमिक इकाई होने का गौरव प्राप्त है। क्या वह ठीक वैसी है या फिर चुनौतियों से घिरा हुआ इस विषय मेरा लक्ष्य है।
आज भी जातिवाद, क्षेत्रवाद, भाषावाद, धर्मवाद, रंगभेद, नश्लवाद, विचारधाराओं के टकराव में आज भी फसे हुए हैं। हम बात करते हैं पूर्ण स्वच्छ और अद्वितीय गणतंत्र/लोकतंत्र का, संवैधानिक अधिकारों का, लेकिन जनाब जरा गौर फरमाये की, आज भी एक स्त्री स्वतंत्र नहीं है। कभी समाज से, जाति से, लोगों की सोंच से, परंपरागत रूढ़िवादी विचारों से, लड़ना पड़ता है। आज भी जहाँ सांवैधानिक अधिकारों के लिए आम इंसान को लड़ना पड़ता है। आज भी दफ़्तरों में फाइलों के सरकने के लिए चाय-पानी परम्परा धड़ल्ले से चल रही है। किसी अपराध से कहीं ज्यादा, उससे बचने के प्रक्रिया व्याप्त है। हम अधिकारिक रूप में तो गणतंत्र के नागरिक है। लेकिन आज भी मन से सच्चे गणतंत्र को आत्मसात् करने में असमर्थ हैं।
लेखक
पुखराज प्राज
छत्तीसगढ़