Friday, January 21, 2022

प्रेम, भक्ति और विचारधारा : लेखक - प्राज/ love, devotion and ideology : Praaj


                            ( विचार)

जिसके विचारों में शुचिता (पवित्रता) हो, जो अहंकार से दूर हो, जो किसी वर्ग-विशेष में न बंधा हो, जो सबके प्रति सम भाव वाला हो, सदा सेवा भाव मन में रखता हो, ऐसे व्यक्ति विशेष को हम भक्त का दर्जा दे सकते हैं। नर सेवा में नारायण सेवा की अनुभूति होने लगे, ऐसी अनुभूति ही सच्ची भक्ति कहलाती है। भक्त के लिए समस्त सृष्टि प्रभुमय होती है। जब व्यक्ति दुनियादारी से दूर हटकर अपनी महत्वाकांक्षाओं को नियंत्रित करता है, तभी उसकी चेतना झंकृत होती है और परमात्म चिंतन में ईश्वरीय भक्ति साकार होने लगती है।
           वहीं प्रेम या प्यार वो भावना है जो किसी व्यक्ति, वस्तु, स्थान, जीवों और अपने ईश्वर के लिए निःस्वार्थ पैदा होती है। प्रेम के सात चरणों के उपरांत भी यदि प्रेम यदि आदर्श को, जो व्यक्तिगत ना होकर, चारित्रिक विशेषता पर हो। और प्रिय में प्रभु की कल्पना होना प्रेम को भक्ति की ओर ले जाती है। कहने का तात्पर्य है की प्रेम भक्ति की ओर जाने वाली पहली सीढ़ी है। 
        किसी विचारधारा विशेष के अनुयायी उसे अपने आप में सत्य मानकर उसका अनुसरण करते हैं, उसके सत्यापन की आवश्यकता नहीं समझी जाती। वस्तुतः प्रत्येक विचारधारा के समर्थक उसकी पुष्टि के लिए किंचित सिद्धांत और तर्क अवश्य प्रस्तुत करते हैं और दूसरे के मन में उसके प्रति आस्था और विश्वास पैदा करने का प्रयत्न करते हैं। यानी सामाजिक राजनीतिक दर्शन में राजनीतिक, कानूनी, नैतिक, सौंदर्यात्मक, धार्मिक तथा दार्शनिक विचार चिंतन और सिद्धांत प्रतिपादन की व्यवस्थित प्राविधिक प्रक्रिया है। इसे विचारधारा कह सकते हैं।
             तीनों प्रतिमानों को एक साथ जोड़ने का प्रयास करते हैं। प्रेम जो व्यक्ति विशेष के संदर्भित अहसासों के गठबंधन से उत्पन्न होता है। वहीं प्रेम की पराकाष्ठा से भक्ति का बोध संभव है। वहीं जब किसी व्यक्ति विशेष में लोग आस्था रखते हैं। भक्ति की अनुभूति हो, तो विचारधारा के समर्थन में लोगों का हुजूम उमड़ जाता है। विचारधारा के जन्म के साथ-साथ उसके अनुयायियों के सकारात्मक या नकारात्मक होने का प्रायिकता नेतृत्व पर निर्भर करता है। ऐसे ही किसी संगठन या संघ या सभा का निर्माण होता है। जिसके नेतृत्व पर उस संघ के लोगों की असीम आस्था सही और गलत में फर्क करने की स्थिति से मुक्त हो जाता है। 

लेखक
पुखराज प्राज
छत्तीसगढ़