Wednesday, February 2, 2022

कागज़-कलम बनाम हथियारबंद हाथ : लेखक प्राज / Paper-pen vs. Armed Hands


                                 (अभिव्यक्ति )

शिक्षा, वर्तमान आधुनिक युग में व्यक्ति के व्यक्तित्व के विकास के लिए एक सबल और सशक्त संसाधन है। फ्राॅबेल कहते,'शिक्षा एक प्रक्रिया है जिसके द्वारा एक बालक अपनी शक्तियों का विकास करता है।' यानी शिक्षा से व्यक्ति में अपनी क्षमताओं को और संवर्धित करता है। वहीं युवाओं के प्रेरणास्त्रोत परम सम्मानीय स्वामी विवेकानंद के अनुसार,मनुष्य में अन्तर्निहित पूर्णता को अभिव्यक्त करना ही शिक्षा है। उनके अनुसार शिक्षा वह संसाधन है जो व्यक्ति के व्यवहारिक कौशल को उद्गार देती है। उसे निपूर्णता की ओर अग्रसर करती है। भारतवर्ष के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी इसी परिपेक्ष्य में कहते हैं,शिक्षा से मेरा अभिप्राय बालक या मनुष्य के शरीर, मस्तिष्क या आत्मा के
सर्वांगीण एवं सर्वोत्तम विकास से है। वे शिक्षा को मनुष्य को संपूर्णता प्रदान करने का प्रमुख संसाधन मानते है। वहीं अरस्तु,स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मस्तिष्क का निर्माण करना ही शिक्षा है। इस रूप में शिक्षा को परिभाषित करते हैं।
              सारकरण में कहें तो शिक्षा इस पूरे पृथ्वी में बुद्धिजीवी मनुष्य के लिए आवश्यक है। यह उसका अधिकार भी है। लेकिन क्या आप कल्पना कर सकते हैं? जो लोग विकास के नाम पर आज भी सड़कों के गांवों तक पहुँचने का इंतजार कर रहे हैं। जो लोग आज भी सिस्टम के कार्यप्रणाली से रूबरू ही नहीं है। उनकी स्थिति क्या होती होगी? उन्हे ना तो, उचित का पता है और ना ही अनुचित का बोध है। ऐसे बिहड़,वनाच्छादित क्षेत्रों में किसी भी सूट-बुट वाले लोगों को देखकर भौचक्के रह जाते हैं। ऊपर से यदि किसी भी सरकारी दफ्तरों मुलाजिमों से तार्रूफ हो, तो ऐसा होता है कि सौ मे से निन्यानवे बेईमान वाली स्थिति से दो चार होना पड़ता है। एक ओर जहाँ दरिद्रता, दूसरी ओर प्रशासनिक प्रणाली में व्याप्त भ्रष्टाचार से इत्तर रहना ही ज्यादा भला समझते हैं।
              यही पर उच्च- निम्न की एक समनांतर रेखा जन्म लेती है। वहीं पर लेफ्ट राईट विचाराधीन लोगों से टकराव की स्थिति उन्हे और भ्रामक स्थिति की ओर ढकेल देता है। पिछड़े लोगों के यह भी अहसास होने लगता है कि संभव हैं की जो नक्सल मद्दगार के रूप में सामने आए हैं। उनका दामन थामना किशोरों, युवाओं के लिए ज्यादा श्रेयस्कर लगने लगता है। वहीं नक्सल विचारधारा में ऐसे नवीन रंगरूटों की भर्ती, आर्थिक सहयोग एवं परिवारिक आवश्यकताओं भरण के संसाधन के शर्तों के साथ सुनिश्चित कर ली जाती है। जरा सोचिए, जिन बच्चों को स्कूल के दहलीज पर रहकर, भविष्य तलाशना चाहिए । वे बच्चे बारूद और बंदूकों के खोह में अपने जीवन के अमूल्य क्षण, जहाँ जीवन जीने की कला में निखार लाना चाहिए। वे हिंसक बनने की ओर आमादा है। यह एक विचारणीय प्रश्न है। 

लेखक
पुखराज प्राज
छत्तीसगढ़