Wednesday, February 2, 2022

चारू मजुमदार के आँसू छलक उठते होंगे....!! : प्राज / Charu Majumdar's tears must have been spilling..!!


                              (नक्सलिज्म


         चारू मुजुमदार भारत के एक कम्यूनिस्ट थे। नक्सलवाद के संस्थापकों में से एक चारू मुजुमदार का जन्म सिलीगुड़ी के एक खुशहाल ज़मीनदार परिवार में 1918 में हुआ। धनी पारिवारिक कड़ियों को छोड़कर उन्होंने एक कठिन और सादा क्रान्तिकारी जीवन को चुना। आगे के जीवन में उन्होंने हथियारबंद नक्सल आन्दोलन में भाग लिया था। 1967 के  नक्सलवाड़ी के हिंसक आंदोलन की अगुवाई कानू सान्याल ने की। वह आंदोलन जहाँ आम शोषितों, निर्धन और किसानों के लिए समर्पित रहा। वहीं लोकतंत्र के विरुद्ध सिस्टम के धीमें रवैय्ये से त्रस्त कृषकों और कामगारों का आंदोलन था। जहाँ कई हिंसात्मक कार्रवाई हुई। ऐसा नहीं है की सिर्फ नक्सलवाड़ी के किसानों के हिंसा किया, बल्की हिंसा के नाम पर भी ताबड़तोड़ हत्याएं होती रहीं। पूरा नक्सलवाड़ी जल उठी। बहरहाल, जिन प्रतिमानों और सिस्टम के विरुद्ध नक्सलवाड़ी के लोग खड़े हुए। जिन्हे नक्सली कहा गया। वे अपने ही मार्ग से भटक गए।
                सिस्टम के विरुद्ध विद्रोह, उच्च और निम्नवर्ग के बीच की लड़ाई से होते हुए, कमीशन के एजेंट भी बन गए। जहाँ नक्सली सिद्धांत, चारू मुजुमदार, माक्सवाद, माओवाद की आधारशिला पर तैयार हिंसा के मार्ग पर चलने वालों क्रांतिकारियों के मार्ग में भटकाव ऐसा हुआ किया। वे खूद ही सिस्टम में व्याप्त भ्रष्टाचार, शिथिलता से लड़ते लड़ते जाने कब ही, भ्रष्टाचारी हो गए। जहाँ से मुजुमदार ने अपने कॉमरेड्स को संबोधित किया था। जहाँ उन्होंने, किसानों की सेवा, समर्थन की कसमें खायी। जहाँ आदिवासियों के हित के लिए लड़ते को तत्पर रहने की बात कही, आज वहीं लोग, राजनैतिक हाथों के कठपुतली बन गए हैं। जो साम्यवाद के समर्थक थे, जो सबको समानता, अधिकार की बात करते थे। तात्कालिक 67 की लड़ाई के समय फक्र से नक्सली कहलाने वाले कामरेडों के उद्देश्य भी पारदर्शिता और व्यापकता रही। लेकिन वर्तमान में नक्सल का पर्याय केवल आतंक और नरसंहार है। जहाँ कुछ लोग अपने हितों के लिए भोले भाले लोगों की जान लेने पर आमादा रहते हैं। जिन्हे सिर्फ पैसा और आतंक की होली पसंद है।
          संभव है, यदि आज भी कहीं आसमान से नक्सलवाद के संस्थापक, आज के नक्सल कृतियों को देखकर खुन के आंसू रोते होंगे। जहाँ विरोध तो है, मगर विरोध किससे कर रहे? यही ज्ञान नहीं? यहां भाई के विरुद्ध-भाई खड़ा हो रहा है। कॉमरेड की परिभाषा ही बदल कर रख दी है। जहाँ नक्सल इसलिए नहीं बनाए जा रहे की कोई विशेष स्थितियों के विरुद्ध लड़ना, बल्कि नक्सल इसलिए तैयार किये जा रहे हैं। तांकि लाल आतंक कायम रखा जा सके और अपने एजेण्डा, एजेंटशीप में दिनों दिन बढ़ोत्तरी होते रहे। 

लेखक
पुखराज प्राज
छत्तीसगढ़