Wednesday, February 2, 2022

विरह प्रेम की जागृति गति और सुषुप्ति मिलन है : प्राज / The awakening of separation love is the meeting of motion and sleep



विरह का अर्थ है, ऐसी चित्त की दशा या अवस्थिति जिसे महसूस तो होना शुरू हुआ, लेकिन महसूस या अहसास अभी अनुभूति नहीं बना है। जिसे परमात्मा की प्रतीति अनुभव में तो आने लगी, लेकिन आमना-सामना नहीं
हुआ, दरस-परस नहीं हुआ है। ध्वनि सुनी है कहीं से, लेकिन कहा से आती है, स्रोत नहीं मिल रहा है।सोना विरह की अग्नि से गुजर-गुजरकर खालिस कुंदन बनता है। और एक दफा मजा आने लगता है आसुओ का-क्योकि ये आंसू परमात्मा के लिए हैं, ये दुख के आंसू नहीं हैं, ये बड़े अहोभाव के आंसू है; इतना भी क्या कम है कि हमें उसका एहसास होने लगा, हम धन्यभागी हैं कि हमें उसका एहसास होने लगा, अभागे है बहुत जिन्हें यह पता ही नहीं है कि परमात्मा जैसी कोई बात होती है, जिन्होंने कभी इस शब्द पर दो क्षण विचार नहीं किया है, जिन्हें प्रार्थना का कोई अर्थ नहीं मालूम।
            विरह की स्थिति में प्रेम हृदय और मन को परे तौर पर घेरे रहता है। इस स्थिति में दोनों देह अथवा मन से किसी कारणवश पृथक् रहते हैं; पर उनमें प्रेम के कारण आन्तरिक सम्बन्ध बना रहता है और वे इच्छा न रखते हुए भी एक दूसरे को बराबर याद करते रहते हैं। दोनों हृदयों में प्रेम का स्रोत बहता रहता है। इस तरह विरहावस्था में प्रेम जागृति गति में रहता है और सुषुप्ति में, मिलन की स्थिति में दोनों एक साथ वास करते हैं। अत: उनमें हास-परिहास विचार विनिमय और प्रणय वार्ता का क्रम इतना लम्बा होता है कि उन्हें प्रेम का अनुभव ही नहीं हो पाता । ऐसी स्थिति में प्रेम का रंग अल्प समय के बाद ही मद्धम पड़ जाता है। सदैव साथ रहने से उनमें अन्य भावना आ जाती है और एक दूसरे का महत्त्व कछ कम होता जाता है। उनमें प्रेम का अंकुर सुप्तावस्था में ही मौजूद रहता है। अतः मिलन को प्रेम की सुषुप्ति कहा गया है।
             प्रेम में विरह भी उसी प्रकार आवश्यक है जिस प्रकार विद्या के लब्धि के लिए परीक्षा, विरह जितना विराट होगा। अंतिम मिलन का आनंद भी उतना ही दुर्लभ होगा। 

लेखक
पुखराज प्राज
छत्तीसगढ़

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