(प्रासंगिकता)
प्यार या प्रेम एक एहसास है, जो दिमाग से नहीं दिल से होता है। प्यार अनेक भावनाओं का सारगर्भित गागर है, जिनमें अलग अलग विचारो का समावेश होता है! प्रेम स्नेह से लेकर खुशी की ओर धीरे-धीरे अग्रसर करता है। ये एक मज़बूत आकर्षण और निजी जुड़ाव की भावना जो सब भूलकर उसके साथ जाने को प्रेरित करती है। वर्तमान 21वी शदीं, चमत्कारों का युग है। जहाँ हम 4जी और 5 जी के अत्याधुनिक वर्चुअल इंटरनेट या कहें की सूचनाओं की सागरिका के तकनीक से लैस युग में जी रहे हैं। जहाँ इंटरनेट के द्वारा चहुंमुखी सूचनाओं के सागर में हम नित्य गोते लगाते रहते हैं। प्रेम के इस नवीन विषय के पड़ाव में आपका मैं हार्दिक अभिनंदन करता हूँ। आज हम बात कर रहे हैं। वर्चुअल प्रेम यानी एक ऐसे प्रेम की पृष्ठभूमि जो केवल और केवल इंटरनेट के धरातलीय क्षेत्र में होता है।
अब आप कहेंगे प्रेम भी कोई इंटरनेट से हो सकता है भला। इसका जवाब और इसकी प्राथमिक कारण को समझाने का प्रयास करता हूँ। प्रायः मनोवृत्ति यह होती है कि हम जिस वर्ग या जिस मानव वृत्त में रहते हैं। वहाँ लोगों से हमारा जुड़ाव हो। खासकर यह अहसास तब और ज्यादा हो जाता है। जब आप किसी संबंध या तालूकात में गुजर कर रहे हैं। कभी-कभी पारिवारिक संबंध अपेक्षाकृत कम होने लगता है। या फिर सरल शब्दों में कहें तो प्रेम कम झलकता है तो, व्यक्ति एक शून्यता और अजीब अकेलेपन के दौर में खुद को पाता है। वह अपनी मनो भावनाओं और विचारों को किसी से व्यक्त और व्युत्पन्न कर अपनी व्यवहारिक जिज्ञासा को शांत करना चाहता है। यदि उसे भौतिक रूप में ना मिले तो वर्चुअल रूप में विकल्प तलाशने का प्रयास अवश्य ही करता है। वर्चुअल यानी इंटरनेट से प्रेम के संसाधन या संबंध के प्रतिमान को वर्चुअल प्रेम कह सकते हैं।
चूँकि पृष्ठ वर्चुअल है तो यह बता पाना संभव भी नहीं है कि सामने जो व्यक्ति विशेष आपसे वार्तालाप कर रहा है। वह वास्तविकता का पर्याय दे रहा है या फिर मिश्री से सुसज्जित मिथ्या वचन का प्रलोभन दे रहा है। ना आयु की बंधन न सत्यापन यूँ कहें की ग्रास के भीड़ में दूब तुलसी की तलाश करने के भाती कार्य है। वर्चुअल प्रेम के प्रलोभनों में फसकर कई लोगों की जाने गई। कई वर्चुअल प्लेट्फ़ार्म के रिश्तों को जब धरातल में लाने का प्रयास किया तो फोटो से 10 साल ज्यादा बूढ़े व्यक्ति के साथ भेट की सफलता हाथ लगी। जो प्रेम के छीटें थे वो भी कब हवा हवाई हुए पता ही नहीं चला। वहीं कई तो ऐसे अंधे भी हुए कि वेब कैम के आगे ही नग्नता की सारी हदें पार कर दी और प्रातः होते पता चला की वहीं नग्नता के स्वरूप को अन्य व्यक्ति ने लोक दृश्य का विषय बना दिया । शर्म और शर्मिंदगी के हालत में इहलीला के दहन से और कोई सार्थक संसाधन नहीं मिले तो उसने वहीं चुन लिया। जनाब में ऐसे नहीं कह रहा हूँ, आज भी किसी भी अखबार को खंगालकर देखें ऐसे उदाहरण दैनिक ही प्रदर्शित हो रहे हैं। जहाँ अकेलेपन और थोड़ी बेफिक्री के साथ बेतुकी बातों के लिए लोग रोज किसी ना किसी के शिकार हो रहे हैं। जहाँ एक ओर इंटरनेट वाला प्यार इंटरनेट एडिक्टेड कर रहा है। वहीं सामाजिक पृष्ठ से व्यक्ति को वर्चुअलता के द्वारा पर पटककर, भीड़ में भी तन्हा ही कर रहा है। इससे एक और असहज परीणाम यह भी है कि इंटरनेट एडिक्टेड व्यक्ति अपनी बाते, सामान्य रूप में लोगों के सामने रखने से कतराता है। वहीं वर्चुअल स्थिति में में वही व्यक्ति सुपरमैन बन जाता है। वर्चुअल प्रेम जहाँ एक ओर एडिक्टेड बना रहा है वही दूसरी ओर पोर्नोग्राफी और न जाने कितने नवीन अपराधों का बोध करा रहा है। बुद्धिजीवी वर्ग के लोगों के लिए यह चिंता का विषय है, एवं इसके संदर्भ में लोगों को जागरूक करना भी आवश्यक है।
लेखक
पुखराज प्राज
छत्तीसगढ़