Friday, January 7, 2022

प्रेम, अपराध और समाज : प्राज / Love, Crime and Society: Praaj


                               (चिंतन

कई मर्तबा सोंचा विचार किया की प्रेम की वास्तविक स्थिति क्या हो सकता है? क्या प्रेम यकायक हो जाता है या इसकी को मनोवैज्ञानिक कारक भी होते हैं। अपन तो वैसे भी विज्ञान के विद्यार्थी में सरीख होते हैं। बिना साक्ष्य के मानेंगे नहीं और यदि कोई विषय दिमाग में हलचल मचाये तो बिना परीक्षण के छोड़ेंगे नहीं। स्त्री व पुरुष के मध्य प्रेम होने के सात चरण होते है और प्रेम की समाप्ति के भी सात चरण मानें गए हैं। आकर्षण, ख्याल, मिलने की चाह, साथ रहने की चाह,मिलने व बात करने के लिए कोशिशें,इजहार, साथ जीवन जीने के लिए प्रयत्न करना व अंत में जीवनसाथी बन जाना होता है। वहीं प्रेम समाप्त होने के सात चरण ना पसंद, झगड़े, नफ़रत, दूरी, अलगाव  के विचार, अलग होने के लिए प्रयत्न करना और अंतिम में अलग हो जाना। प्रेमी व प्रेमिका या के प्रेम करने व अलग होने की मनोस्थित एक समान है।
         कहने का तात्पर्य है कि प्रेम का गणित भी बड़ा कठीन होता है। बहरहाल अब आप प्रेम के विषय बोध से परिचित हो गए हैं। तो अब लक्षित विषय के लिए आपकी आवश्यक योग्यता पूर्ण हो चुकी है। हम बात कर रहे हैं। प्रेम जो द्वी-पक्षीय होता है। जिसमें दोनो की चर यानी स्त्री और पुरुष की सहमति अनिवार्य शर्त है। कभी-कभी आकर्षण से बंधित होकर दोनों में से कोई एक चर, अपनी वर्चस्वता दिखाते हैं। इसे एकतरफा प्रेम का भी नाम से इंगित किया जा सकता है। प्रेम के छटवे चरण तक स्वयं ही पहुचकर यदि स्वीकृति प्राप्त करने की कोशिश करता है। यदि सफल ना हो, तो हठधर्मिता का पालन करने लग जाता है। यदि तब भी सफल हाथ नहीं लगती है तो प्रेम के मार्ग से विचलित होकर द्वेषात्मक कार्यों में लिप्त हो जाता है। इसी के फलन अपराध का जन्म होता है। दोनों में से एक चर जहाँ प्रेम साबित और संबंध स्थापित करना अपना लक्ष्य समझता है। अधिकांशतः मामलों में जहाँ पुरुष चर ही स्त्री पर द्वेष स्वरूप, प्रतिशोध लेने की मनसा से प्राणघातक हमलें करने के लिए भी आमादा हो जाता है। डराना-धमकाना, छेड़छाड़, एसिड अटैक और बलात्कार के रूप में इसके उदाहरण के रूप में देख सकते हैं।
               वहीं समाज में घटित इस प्रकार की घटना के लिए लोग 90फिसदी तक स्त्री को दोषी करार दिया जाता है। जहाँ स्त्री के वस्त्र, आभुषण, स्वभाव यहाँ तक की चाल-चलन पर भी दोषारोपण के कसीदें गढ़े जाते हैं। कई एसिड अटैक, रेप पीड़िता या छेड़छाड़ के दौरान जिस मनःस्थिति से स्त्री गुजरती है। उसके दुख का अंदाज़ा भी लगा पाना असंभव है। घर से बेघर और असहाय छोड़ दिया जाता है। कई मामलों में सामाजिक प्रताड़ना से तंग आकर पीड़िता खुदखुशी को भी मजबूर हो जाती है। इस सब के विकास में यह पुरुष प्रधान समाज तनिक भी विचार नहीं करता है। यह एक गंभीर और विचारणीय विषय है। 

लेखक
पुखराज प्राज
छत्तीसगढ़