(अभिव्यक्ति)
स्कूल के दिनों की बात है, मैं शाला नायक था। उस समय लेटर इंट्री में एक लड़की का एडमिशन अपने स्कूल में हुआ। तभी तो पहली बार देखा था उसे, थोड़ी उलझी-थोड़ी चंचल पर जवाब देने में चटक थी। कक्षा 8वीं के साथ हम दोनों के साथ चलने का सफर प्राथम्यता की दौड़ में था। एक अच्छी प्रतिद्वंदी, एक अच्छी सहपाठी और अपने स्कूल टापर के टैग की कड़ी टक्कर देने वाली वो लड़की कम थोड़ी ही थी। जनाब जब से आई, अपने को तो जैसे अपने स्कूल के परीणाम में टॉप करने की आदत पर सेंध लगाने लगी थी या कहनें की उससे आगे बढ़ने के फिराक में ध्यान स्टडी की ओर आने अपना भी बढ़ा रहा। युँ ही हम कक्षाओं का सीढ़ी पे सीढ़ी चढ़ते रहे। समय के साथ बढ़ते रहे। उसकी थी दो सहेलियाँ और तीसरी वो खूद, तीनों पढ़ाई में कमाल की रहीं। अपनी स्थिति क्लास से डाऊन ना हो इसलिए तैयारी अपनी भी पैनी ही रही। इंटरमीडिएट के बाद तो जैसे करवट ही बदल गया, पढ़ाई में जो तेज थी वहीं फिसल गई। ग्रामीण अंचल का प्रभाव कहें या सामाजिक दबाव, उस समय बालिका वधु सीरियल की बाल वधु भी घर-घर को रुला रही थी। ठीक वैसे ही वेशभूषा में में वो पगली लड़की विदा हो गई।
प्रतिद्वंदता से अपने भी बीच दोस्ती फाइनली हो गया। कभी वो पूछ लेती हालचाल, कभी अपन ही पूछ लेते बेशक कई सवाल। ऐसे वैसे करते सोशलमीडिया से अपन भी जुड़े रहे। स्कूल के दौर में दोस्ती की नींव, अम्बुजा सीमेंट की जोड़ की तरह मजबूत होना लाजमी था। शादी के कुछ सालों के बाद छोटी निन्नी भी आ गई। कभी वाट्सएप पर तो कभी पूरानी यादों की किताब पर, उसके साथ बिते पलों को अमुमन याद करते रहे। कभी उसकी तो कभी उसकी त्रिदेवी संगठन की बात करते। एक हास्यास्पद बात याद है कि वेलेंटाइन डे के दिन, उसका फोन आया, टीवी चालू करने और किसी न्यूज को देखने के लिए प्रेरित करी। हम भी तो खुराफाती थे, न्यूज में कॉलिंग करके अपने संदेश वेलेंटाइन पर दे सकते थे। कई कोशिशों के बाद,कॉल लगा। ये हमारे लिए बड़ा दौर था। क्योंकि पहली बार जो टीवी पर नाम और अपना संदेश चल रहा था। उस पगली ने कहा था, 'यार हद ही करते हो, कुछ भी कर देते हो। हाँ मगर कमाल करते हो।' सबकुछ तो जैसे ठीक ही चल रहा था। पर शायद नियती के मन में कुछ और चल रहा था। युँ अचानक न जाने क्या हुआ, वो पगली लड़की.....!!! दूर कहीं अँधेरे विराने में खो गई। किसी ने बताया वो गहरे नींद में हमेसा के लिए सो गई।
एक दोस्त, एक अटूट रिश्ता जैसे नियती के आगे बौनी हो गई। अब उसकी बातें, उसकी यादें सबकुछ वहीं मन: पटल पर अनुकूल परिस्थिति में विचरण कर रहे हैं। बस नजरें उसे तलासने की अनुक्रमण कर रहे हैं। वो चीर स्थाई मनों मस्तिष्क में एक अद्वितीय छवि को लेकर, मंद मुस्कान के साथ मन:पटल पर तो दिख जाती है। मगर वास्तविकता के धरातल से ओझल नज़र आती है। उसने कभी कहा था, 'शीर्ष से भी आगे चलेंगे, कभी तुम कुछ लिख देना। यदि फूरसत मिली तो हम अवश्य ही पढ़ लेंगे।' हर पृष्ठभूमि पर मेरी सखा मेरे साथ अडिगता से स्तंभित नज़र आती है। आज इस मोड़ पर, यार..... वो पगली लड़की बहुत याद आती है।
लेखक
पुखराज प्राज
छत्तीसगढ़