Friday, January 21, 2022

अनुसरण नहीं स्वच्छंद है प्रेम : प्राज / love is not following

 
                         (अभिव्यक्ति


प्रेम सर्वत्र है मगर समझता वहीं है जिसके पास जीवित हृदय हो। अब आप कहेंगे जीवित तो सभी के पास हृदय होता है। वही मृत जीव के पास हृदय भी मृत होगा। मेरा तात्पर्य केवल श्वास लेने से नहीं है। अपितू हृदय में धारित अनुभवों, अनुभ्रूतियों और अहसासों से है। यदि किसी के दुख को सुनकर, देखकर या जानकर आप स्वमेव भी उस दुख को समझते हैं। यानी निश्चित है की आपके हृदय में जीवन आज भी जीवित अवस्था में है।
              वर्तमान भौतिकवाद के फेर में जहाँ मनुष्य वास्तविक प्रेम के अनुकरण के बजाय, प्रेम को साधन बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। जहाँ प्रेम जैसे पवित्र बंधन को धूमिल किया जा रहा है। यत्र-तत्र और सर्वत्र आपको इसके उदाहरण देखने को  मिल रहे हैं। जहाँ एक ओर प्रेम की प्राति के लिए प्रेम विवाह ना होकर, पलायन विवाह बनने को आमादा है। वहीं लोगों में भी इसके सफलता के आसार कम देखते हुए। इसके बहिस्कार को ज्यादा उचित समझा जाता है। वो कहते हैं ना एक मछली भी तालाब को गंदा कर देती है। इसी तर्क पर तर्क करें की यदि पूरी तालाब ही गंदी हो, तो एक पवित्रता बोध मछली भी गंदी ही कहलायेगी। वर्तमान समय में प्रेम के साथ यही हो रहा है। प्रेम के नाम से लोगों में भ्रांतियां है, कुछ इसे बरगलाने की युक्ति, प्रलोभन का कारक, दैहिक आग, शोषण और शारीरिक जिज्ञासाओं को शांत करने की संसाधन तक मानने लगे हैं। परंतु, ये उसी वर्ग के लोग है जिन्हे कभी प्रेम की वास्तविकता का बोध नहीं हुआ है।
                प्रेम जो निष्काम है, प्रेम जो स्वच्छंदवाद का प्रधान है। जिसमें बंधन नहीं है, जिसमें खंडता नहीं, जो शारीरिक सुख को निम्नतम समझता है। प्रेम जो केवल आत्मा का परमात्मा से मिलकर को चाहता है। प्रेम वह ज्वाल है जिससे सोना और खरा होता है। प्रेम वह पारस है जो लोहे को सोना कर दे। प्रेम वह व्यवाहर है जो शत्रु को अपना कर दे। प्रेम वह परिवर्तन है जो अनंत है। क्योंकि प्रेम शाश्वत है। 

लेखक
पुखराज प्राज
छत्तीसगढ़