( अभिव्यक्ति )
अपनी जाति को सर्वश्रेष्ठ मानने का सिद्धांत जातिवाद का परिचायक है। कहने का तात्पर्य है की जाति यानी जिस परिवार में एक बच्चा जन्म लेता है। वह परिवार जिस कुल से आता है और वह कुल जो एक जाति का प्रतिनिधित्व करता है। बच्चा उसी जाति के संरक्षण में अपने आप को देखता है, बढ़ता है और सुरक्षित महसूस करता है। जिस जाति के संरक्षण में वह रहता है स्वभाविक है उसके अच्छे-बुरे सारे परंपरागत विचारों से अवगत रहता है। लेकिन कभी उसके उलंघन की हिमाकत नहीं करता है। वहीं अपने जाति के महिमामंडन में लगा रहता है। यही भावना जातिवाद कहलातीं है।
काका कालेलकर के अनुसार," जातिवाद एक अबाधित अंध और सर्वोच्च समूह भक्ति है जो कि न्याय, ओचित्य, समानता और विश्व बंधुत्व की उपेक्षा करता है।" वहीं के. एम. पणिक्कर के अनुसार," राजनीति की भाषा मे उपजाति के प्रति निष्ठा का भाव ही जातिवाद है। अर्थात् जातिवाद के कारण व्यक्तियों मे उपजातियों के प्रति निष्ठा की भावना होती है। हर उपजाति अपनी ही उपजाति को लाभ पहुंचाना चाहती है चाहे इससे किसी अन्य उपजाति को कितनी ही हानि हो।"
उक्त परिभाषाओं के आधार पर कह सकते हैं कि जातिवाद एक संकीर्ण भावना या विचार है। इस भावना के चलते लोग केवल अपनी जाति के सदस्यों के हितों के बारे मे सोचते है। इतना ही नही वरन् दूसरी जातियों तथा समाज के व्यापक हितों को आघात पहुँचाकर अपनी जाति के हितों को पूर्ण करने के प्रयास करते है। इससे समाज और राष्ट्र के हितों की केवल अनदेखी ही नही होती वरन् उसकी प्रगति और विकास मे बाधा भी उत्पन्न होती है।
जातिवाद की आवश्यकता क्या है? इस प्रश्न का वैसे तो सटिक और न्यायोचित उत्तर तो यह है कि एकता में शक्ति है और यहीं कारण है की लोग अपने हितों के संरक्षण के लिए जातिवाद को बढ़ावा देते हैं। लेकिन क्या किसी जाति विशेष के अंतिम पंक्ति में खड़े व्यक्ति विशेष को लाभ मिल पाता होगा? यह एक विचारणीय प्रश्न है। जहाँ प्रत्येक जाति समूह में एक विशेष वर्ग जो अपने समूह के अन्य लोगों के जीवनशैली से थोड़े उच्च स्तर पर जीवन यापन करते हैं। वे जातिवाद का प्रयोग कहीं ना कहीं, राजनैतिक, आर्थिक या सामाजिक एजेण्डा सिद्ध करने के लिए करते हैं। चूँकि लोगों का समर्थन मिलता है, इस लिए अपने मनोरथ की रोटी सेकने में क्या बुराई है। इसी अवधारणा के पालक बनने इनको देर नहीं लगता है।
बहरहाल, वहीं जातिवाद की तेज तलवारों के पहरे से जाने का पर्याय है, आप की स्वतंत्रता, आपके अधिकार, और आपके लिए लड़ने वालों की संख्या में केवल आप अकेले ही रह जाते हैं। कहने की तात्पर्य है कि यदि किसी जाति या समूह से आप बहिष्कृत हो जाते हैं, तो संभव है आपकी सामाजिक सुरक्षा का ढ़ांचा टूट जाता है। वहीं विभिन्न प्रकार के प्रतिबंध आपके ऊपर लाद दिये जाते हैं। परिणामस्वरूप वह व्यक्ति अपने आप को अस्थिर और असुरक्षित महसूस करता है। मूलतः यही कारण है कि लोगों में आज भी जातिवाद की भावना कटरपंथी विचारकों के समरूप हो गई है। जातिवाद के चलते कई मुद्दे हैं जिनके कारण आज भी समाज आज भी ज्वलंत स्थिति से गुजर रहा है। और ये जातिवाद के ठेकेदार ही है जो इन्ही ज्वलंत मूद्दों पर अपने फायदे की रोटी सेकते दिख ही जायेंगे।
लेखक
पुखराज प्राज
छत्तीसगढ़