Sunday, January 16, 2022

प्रदर्शन आवश्यक नहीं, प्रेम का बोध प्रधान है : प्राज / Demonstration is not necessary, understanding of love is important: Praaj


                              (चिंतन



दृष्टिगोचर है कि प्रेम जो इस सांसारिक सत्ता में अद्वितीय और परम स्थान पर विराजित है। प्रेम जो सदियों से संचरित है, जिसके कारण ही सृष्टि का सृजन संभव है। उस प्रेम में सभी समान ही होते हैं। लेकिन बहुधा देखा गया है कि प्रेम का पर्याय प्रदर्शन कतई उचित नहीं है। प्रेम जो इत्र के समान है और अमिट है। लेकिन वर्तमान दौर में दीवारों पर, पत्थरों पर यहाँ तक की दार्शनिक स्थलों में उकेरे जाने वाले कृत्य को भूले से भी प्रेम का पर्याय देना ही गलत है।
            जहाँ एक ओर आदि काल से ही प्रेम समाज को संदेशित करते आया है। लेकिन वर्तमान में प्रेम और आकर्षण दोनो में ही भेद करने में असमर्थ प्राणी, प्रेम की अन्य ही परीभाषा को आत्मसात् कर रहे हैं। जहाँ आडम्बर, छल, लोक हास्य और प्रतिक्रार जैसे प्रेम विरोधत्व का संकलन कर प्रेम को वास्तविक बता रहे हैं। जहाँ वास्तविक प्रेम इन्ही सभी का खंडन करता है। जहाँ प्रेम कभी द्वेष, राग, हिंसा या निजता नहीं चाहता है। लेकिन आज के समय में विश्वविख्यात शब्द है स्वामित्व की भावना है। जिसमें ग्रसित व्यक्ति प्रेम पर एकाधिकार चाहता है। प्रेम में बंधन और सारी सीमाओं को पार करते हुए अश्लीलता को लांघ जाता है। और कहता है हाँ..! मैने भी प्यार किया है। जहाँ पत्थरों पर आभाषी हृदय के चित्रांकन के साथ एक कोने पर अपना नाम, दूसरे कोने पर प्रिय का नाम और तेज धार वाले तीर का निशान लगाना नहीं भूलते हैं। जाने यह कैसा प्रेम हैं।
           ऐसा प्रेम प्रत्येक सार्वजनिक स्थलों के समीप देखने को मिलता है। मगर मेरे समझ में एक विशेष बात तो और भी समझ नहीं आता है कि जहाँ आम आदमी नहीं पहुच पाता है। वहाँ ये मक्कड़-मानव रूपी प्रेमी कैसे चढ़कर बड़े आराम से रंगरेगन कर देता है। शब्द भी वहीं है अर्थ भी वही है, लेकिन उसे आत्मसात करने की इच्छाशक्ति,विचार और नजरिया बिलकुल नया है। जो प्रेम को भारी गर्त की ओर ढ़केल रहा है। संभव है कपोलकल्पना के इस मानसिक विषयक दौर में वास्तविक प्रेम की आभा धुमिल नजर आती है। यदि कहीं आज भी ऊपर से प्रेम में सफल, वास्तविक प्रेम के पुजारी इन निठल्लों, बगुला के चोगे में कागों को देखकर कहते होंगे। ऐसे तो प्रतिमान हमने कभी नहीं छोड़े थे। जाने कैसे -कैसे लोग है। जो प्रेम की परिभाषा ही पटल दी है। 

लेखक 
पुखराज प्राज
छत्तीसगढ़