(अभिव्यक्ति)
ओशो कहते हैं कि, जीवन में आप जो करना चाहते हैं, अवश्य करें। ये मत सोचो कि लोग क्या कहेंगे? क्योंंकि लोग तो तब भी कुछ न कुछ कहते हैं जब आप कुछ नहीं करते हैं। जीवन एक लंबी यात्रा है, जिसके प्रत्येक मोड़ पर हम कुछ ना कुछ अवश्य ही सीखते हैं। कभी वेदनाओं के तले तो कभी आनंद के अद्वितीय क्षणों में हम अपने आप को पाते हैं। अक्सर लोग अपनी परिस्थितियों या जीवन के पारिस्थितिकी को अपने असफलता का कारक मानते हैं। जबकी वास्तव में वो खूद को परखने में असफल रहते हैं। यदि सब कुछ आपके विचारों के अनुकूल मिल जाये फिर उस सफलता का महत्व आप कैसे समझेंगे। जब तक किसी लक्ष्य के पीछे भागेंगे नहीं। जब तक उस लक्ष्य को पाने के पूर्व चोट ना लगे। लक्ष्य से पहले के सफर का यदि सुगम और सरल हो जाये तो फिर आप में और अन्य में क्या फर्क रह जायेगा। प्रकृति के नियम से इस तर्क को समझने का प्रयास करते हैं। जैसे सामान्य जमीन पर घास तो स्वत: ही उग जाते हैं। घास भी एक पादप है और अन्न जो हम खाते है वह भी पादप ही है। लेकिन क्या अन्न किसी भी जमीन पर स्वत: ही थोड़ी उग जाता है। उसके अंकुरित होने से लेकर फसल तैयार होने तक के चक्रण में विविध परिस्थितियों से बीज को गुजरना पड़ता है। तब जाकर कहीं वह अपने समरूप कई और बीजों को फलित कर पाता है। ठीक वैसे ही आपका लक्ष्य होता है।
मनुष्य, जो बुद्धि लब्धित है। जो अपने शक्तियों को पहचान सकता है। परिस्थितियों को अपने खिलाफ और अपने अनुकूल करने की अदम्य साहस रखता है। लेकिन अपनी आलसता और अपने कमियों को सुधारने के बजाये परिस्थितियों में असफलता का कारण ढूढने की मनसा ही उसे ले डुबता है। यदि कभी भी को लक्ष्य आप निर्धारित कर रहे हैं, तो यह तो निश्चित है कि आपको अपने कम्फर्ट जोन से बाहर निकलना होगा। आपको यह भी समझना होगा कि जो कार्य आप कर रहे हैं। या करने के लिए उद्देश्यित हैं। उन्हे यदि आप जीत नहीं पाते हैं तो निश्चय यह भी है कि जब तक आप उसे हासिल नहीं कर लेते है। तब तक विश्राम के विषय में चिंता भी आपके लिए कभी भी श्रेयस्कर नही होगा। आपको एक कुशल विद्यार्थी की तरह प्रत्येक मोड़ को समझना होगा। यहाँ समय ही आपका साथी, आपका सहपाठी, शिक्षक और समय ही आपका परीक्षक है। जो समय के सदुपयोग को समझा और समय के तालमेल से आगे बढ़ा, उसकी जीत तो निश्चित है।
आपके लक्ष्य से पहले आपके सामने कई चुनौती आयेंगें। संभव है इन चुनौतियों की बाधाएं इतनी विशाल हो की आपको असफलता भी मिले। लेकिन अपने असफलता के कारणों पर पूनर्विचार कर , पुनः उससे निवारण का प्रयास करते हैं। तो सफलता आपकी प्रतीक्षा में अवश्य ही स्तंभित खड़ी मिलेगी। उस विजयश्री के पश्चात् जो सुख और आनंद के पलों का हर्ष दुनिया के किसी भी आनंद से अद्वितीय होगा। सफलता के पूर्व कमी केवल इतना है की आप अपनी क्षमताओं को समझे, यथार्थ लक्ष्य का निर्धारण करें और फिर तत्परता से लक्ष्य के पीछे लगे रहें। अंततः विजय तो आपकी है और यह निश्चितता भी आप के प्रयत्न पर निर्भर है।
लेखक
पुखराज प्राज
छत्तीसगढ़