(चिंतन)
राह चलते चुम्बन का दृश्य यदि नयनसुख हो तो, 'यह तो आम बात है' यह कह कर हम किसी मुद्दे इस प्रकार हाथ झाड़ लेते हैं जैसे हम उनकी छूट को बर्दाश्त कर रहे हैं या फिर अपनी आंखों को अपमानित कर रहे हैं। क्रियात्मक स्तर पर अगर बात करे तो यह वो पाक क्रिड़ायें हैं जो एक नारी-पुरुष के बीच एक सम्मान की भावना की उत्पति करती हैं। उन सारे भावनाओं का जनक है जो एक रिश्ते को बनाने में एक अहम भाग अपनाता है। आज की अवस्था में दीवार से रगड़ाते प्रेम उन सारी कमियों को उजागर करता है जो हमारे समाज में विद्यमान है।
युवाओं के सम-टाइम्स मिस यू और ऑल टाइम लस्ट यू वाली धारणा का उद्गार कहीं ना कहीं प्रेम की पवित्रता पर दैहिक आकर्षण का अँधानुकरण करने को आमादा है। प्रेम की परिभाषा को परोसते प्रयोजकों में जहाँ सिनेमा से लेकर सोशल मीडिया तक और चैट्स के प्लेटफार्म से अंतरंग संबंधो की लीला परोसती पत्रिकाओं ने तो समाज का बंटाधार कर दिया है। जनाब आप यकीन नहीं करेंगे ऐसे कपोल-कल्पानाओं के साथ सृजित ये कथा, कहानी, ऑडियो, विडियो और लूप विडियो को एक बार बड़े ध्यान से देखना वाला अप्रेमी भी दैहिक आकर्षण का लब्धि होनें को आमादा हो जाये। बता क्या रहा हूँ सरकार स्थिति तो यह भी है कि यदि प्रेम ना मिले तो रिश्तों की शैय्या की खाट खड़ी कर दे। इस प्रकार क्षुब्ध होकर मनुष्य केवल देह से देह मिलन को प्रेम समझने की भूल समझ बैठा है। जहाँ शारीरिक रगड़न से उत्पन्न चीखें प्रेम के चर्मोत्सर्ग की अवस्था प्रासंगिकता बोध करते हैं। संभव है ये ऐसे लोगों का झुंड है जिन्हे प्रेम के नाम पर दैहिक शोषण के ज्ञान देकर बरगलाने का सफलतापूर्वक प्रयास किया गया है।
वास्तविक प्रेम जहाँ समर्पण और निर्बाध बंधनों से मुक्त होता है। जहाँ यह शारीरिक संयोग से कहीं ज्यादा आत्मिक संयोग को प्रमुखता से प्रतिनिधित्व देता है। जहाँ शारीरिक दोहन की लोलुपता और संभोग के दहलीज पर ढ़केलने वाली विचार धारा नहीं अपितु पूर्ण जीवन में सुख-दुख के पड़ावों में जीवन के समस्त पहलु चाहे वह संघर्ष हो या फिर उत्कर्ष दोनो को सहर्ष स्वीकार करने की अपार क्षमता का नाम प्रेम है। प्रेम को दुषित करने के विचार से ही शारीरिक संबंधों को या कहें केवल आकर्षण को प्रेम का नाम दिया गया है। जो कतई यथार्थ बोध नहीं है। प्रेम तो सास्वत है, प्रेम अमर है। मनीषियों ने प्रेम को पूजा का दर्जा दिया है। प्रेम को आकर्षण के कीचड़ से छीटें मार कर कलंकित ना करें। प्रेम अमरत्व है। कपोल कल्पनाओं के सागर से बाहर निकले और वास्तविक प्रेम के बोध में मंत्रमुग्ध होकर प्रेम से संसारिक विषयों का आनंद लें।
लेखक
पुखराज प्राज
छत्तीसगढ़