31 जुलाई 1880 को धनपत राय श्रीवास्तव जी का जन्म हुआ। जो प्रेमचंद नाम से जाने जाते हैं, वो हिन्दी और उर्दू के सर्वाधिक लोकप्रिय उपन्यासकार, कहानीकार एवं विचारक थे। उन्होंने सेवासदन, प्रेमाश्रम, रंगभूमि, निर्मला, गबन, कर्मभूमि, गोदान आदि लगभग डेढ़ दर्जन उपन्यास तथा कफन, पूस की रात, पंच परमेश्वर, बड़े घर की बेटी, बूढ़ी काकी, दो बैलों की कथा आदि तीन सौ से अधिक कहानियाँ लिखीं। उनमें से अधिकांश हिन्दी तथा उर्दू दोनों भाषाओं में प्रकाशित हुईं।
मुंशी प्रेमचंद जी के उपन्यासों में जीवन के उतार-चढ़ाव का विस्तृत वर्णन किया गया है। इनके उपन्यासों में जीवन के संदर्भ में या कहें उनके उपन्यास के पात्रों के जीवन की कला कुछ इस तरह है कि, जीवन में यदि कोई समस्या उत्पन्न हो तो पात्र दो प्रमुख भूमिका में होते है। पहली भूमिका वे अपने जीवन की वेदना या चोट के कारक दोषारोपण के मरहम से तलाशते हैं। वहीं दूसरी भूमिका से देखें तो अपने ऊपर आये समस्या, वेदना, चोंट, या किसी प्रकार की क्षति के लिए बदले की भावना का जन्म देने वाले बनने को आतुर हो जाते हैं। लेकिन इन दोनो से हटकर एक महत्वपूर्ण स्थिति या कहें भूमिका होती है नायक की जो तृतीय स्थिति के पक्षधर दिखलाई पड़ते हैं।
जो कि अपने जीवन में आये कष्ट,दुख, वेदना, क्षति या हानि के विषय में सारगर्भित विश्लेषणात्मक विचार के होते हैं। जो अवक्षेपण का बदला अवक्षेपण नहीं और ना ही अवक्षेपण के बदले आवेश को प्रधानता देते हैं। तृतीय भूमिका यानी नायक है, जो अपने जीवन के संकटों का समूल नाश के प्रति कटिबद्ध हो जाते हैं। अंत: हम देखते हैं की समस्याओं के सागर को पार कर नायक अपनी अद्वितीय छवि हमारे मन:पटल पर उद्घृत करता है।
परम श्रधेय प्रेमचंद जी के उपन्यासों के पठन से जीवन जीने की कला का प्रासंगिक एवं वर्तमान स्थितियों के साथ समानांतर संबंध आप अवश्य पायेंगे। जीवन को इस प्रकार जीने के लिए उद्देश्यपूर्ण बनाएं जहाँ आप तात्कालिक जवाबी हमले के बजाए, जीवन में संघर्षों को पूर्णतः शून्यता की गर्त में रखकर, जीवन में उत्सवों का श्रृंग बढ़ाते रहें।
लेखक
प्राज
छत्तीसगढ़