Wednesday, May 19, 2021

गरीबी रेखा से नीचे वाला प्रेम (व्यंग्य) : प्राज

गरीबी रेखा से नीचे वाला प्रेम 
                   (व्यंग्य) 
प्यार या प्रेम एक एहसास है। जो दिमाग से नहीं दिल से होता है प्यार अनेक भावनाओं जिनमें अलग अलग विचारो का समावेश होता है। वर्तमान कलियुग के 4जी वाले दौर में प्रेम का तो वर्गीकरण अावश्यक हो गया है। यदि आप दर्शनशास्त्र या दार्शनिक विचारों वाले हैं तो कहेंगे, प्यार का एक सामाजिक दर्शन और आचार क्षेत्र भी है। जो इसके सामाजिक मूल्य तथा प्रेमी और प्रेमिका की स्वायत्तता पर पड़ने वाले प्रभाव इत्यादि विषयों पर ग़ौर करता है़।
         मगर ठहरिए जनाब़ अब चलते हैं लोलुपता के इस दौर में प्रेम के वास्तविक धरातल को तलासने का प्रयास करते हैं। यदि प्रेमी-प्रेमिका अच्छे घर से ताल्लुक रखते है। कहने का तात्पर्य है दोनो के परिवार वाले रोटी कपड़ा और मकान के जरूरतों के अलावा भी अफोर्ड कर सकते हैं एवं परिवार का मुखिया एपीेएल कार्डधारी है। चलने की लिए चार पहिये की सवारी है। फिर कह सकते हैं की बन जायेगी रिस्तेदारी है। इसका प्रायोजित उद्देश्य भी या कहें दो परिवारों का भरत-मिलाप तो थाने अंदर ही होता है। यदि परिवार के मुखिया का आन बान और शान घटती हो, तो कभी कभी बंदुक से ठाय्य्य की आवाज़, तेजी से गोली हॉनर किलिंग का रूप भी ले लेती है। बहरहाल जनाब़ ऊँचे चारदिवारी वाले मकान में कई रात चुटकियों में दम तोड़ देते है। चल गई तो चल गई नहीं तो, गला ही मड़ोड देते हैं। जैसे भी प्रेम यहाँ तो चल जाता है, सामाजिक भवर से भी ऊपर प्रदर्शन कर पाता है। 
        दूसरे वर्गीकरण में परिवार जो बीपीएल कार्डधारी हो। रोटी, कपड़ा और मकान की पूर्ति में पूरा परिवार लाचारी हो। यहाँ भूले से भी प्रेम नामक चिड़िया चहक भी दे तो, बात का बतंगड़ खड़ा हो जाता है। पहले तो बापू फिर सिपहिया फिर समाज के चंद ठेकेदारो के बीच प्रेमी जोड़े को कुटा जाता है। जहाँ से मन ना भरे तो सामजिक बहिष्कार, दंड, गृह- बहिष्कार, सबकी फटकार के दौर रंगारंग प्रस्तुतियों के झाँकियों के दर्शन यथा शिघ्र करा दिये जाते हैं। कसम से पाँच प्रपंच के ताने-बाने तत्काल ही बुन दिये जाते हैं। रही-सही कसर सोशल मीडिया के बेशर्म आँखों को सुकुन देने के लिए "मोला लड़का चाही, बस बात खत्म" जैसे विडियोज़ से प्रेम के तमाशे बनाने में देर नहीं लगाते। इसी संदर्भ में लोग हो सकता है बालिग -नाबालिग के संदर्भों में रोकने का प्रयत्न हो। पर निजता बनाए रखना भी तो अनिवार्य था, मगर किसने तारतार किया? यह विचारणीय प्रश्न है।
       वर्तमान में टाइटेनिक वाले प्रेम की पराकाष्ठा है। जहाँ हाडमास को प्रधान और हृदय के भावों के शून्यता से देखा जाता है। प्रेम के अमर छंदों में, आजीवन गठबंधनों में कौन बंधना चाहता है। जाने दार्शनिकता से भरे  प्रेम की वास्तविकताओं को कौन समझ पायेगा? नहीं तो वर्तमान में प्रेम का वर्गीकरण और वृहद होते जायेगा....और वृहद होते जायेगा। 

लेखक
पुखराज प्राज
साहित्य साधना सभा, 
छत्तीसगढ़