Thursday, February 18, 2021

चाटुकारिता से लबरेज़ परजीवियों से हमेशा रहें सावधान(आलेख) :- पुखराज प्राज


वे जीव जो किसी अन्य जीव पर भोजन और आवास के लिए आश्रित होते हैं, परजीवी कहलाते हैं। आंग्ल भाषा में इसे पैरासाइट और हिन्दी में परजीवी कहते हैं। उदाहरणतः हम देखें तो अमरबेल एक प्रकार की लता है जो बबूल, कीकर, बेर पर एक पीले जाल के रूप में लिपटी रहती है। जो शनैः शनैः ही सही मगर जिस वृक्ष या पौधे से लिपटी रहती है उसे पोषण लेती रहती है और खोखली करते रहती है। बहरहाल मेरा लक्ष्य प्राणी विज्ञान या जंतु विज्ञान नहीं है, अपितु मै समाज के उन अदृश्य परजीवियों एवं उनके पारिस्थितिक तंत्र के संदर्भ में विचार रखने का प्रयास कर रहा हूँ। जो आपके इर्दगिर्द भी पाये जाते हैं या इनकी संभावना लगभग से कहीं ज्यादा यकीनन की स्थिति में है। होमोसेपियंस के विशाल घनत्व के बीच में इनका भी स्थान ठीक उसी समान होता है जिस समान थेथर विषम परिस्थितियों में भी पाया जाता है।

वर्तमान परिदृश्य में कबीर दास जी के दोहे, निंदक नियरे राखिए, ऑंगन कुटी छवाय। बिन पानी, साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय।। उक्त दोहे के अनुसरण के बजाए, लोगों में चाटुकारिता नियरे राखिए का स्वभाव पनपता प्रदर्शित हो रहा है। आधुनिक मानव जहाँ, भौतिकता के लोलुपता में लिप्त है। वह अपने अवगुणों में सुधार की अपेक्षा, अपने वर्चस्व का महिमामंडन करने में ज्यादा दिलचस्पी रखता है। संभवतः मनुष्य के इसी स्वभाव से एक ऐसा धड़ा भी पनपने लगा है, जो लोगों के महिमामंडन के लिए कुटीर उद्योग में दिन दोगुनी और रात चौगुनी तरक्की कर रहे हैं।

वास्तविक यह भी है कि हम जैसे सोचते, देखते या चाहते हैं। ठीक वैसे ही चींजे हमारे आसपास उपस्थित होता हैं। लॉ ऑफ अट्रेक्शन के अनुसार आप अपने जीवन में पॉज़िटिव और निगेटिव चीज़ों को अपने विचारों और कर्मों से अपनी ओर आकर्षित कर सकते हैं। यह इस सिद्धान्त पर आधारित है कि सब कुछ ऊर्जा से निर्मित है, इसलिए जिस प्रकार की ऊर्जा आप बाहर छोड़ेंगे, वही आपके पास वापस लौटेगी। इसीलिए तुलसीदास जी ने बहुत पहले ही लिख दिया था, जाकी रही भावना जैसी प्रभु मूरत देखी तिन तैसी।

लेकिन प्रश्न उठता है कि, क्या ये चाटुकारिक-परजीवी घातक होते हैं? यह मनन का विषय है, एक छोटे से संदर्भ से आपको इस विषय क्षेत्र में प्रवेश कराने का प्रयास करता हूँ। विचार करें की, जो परजीवी यानी जिनका बहुतायत लाभ आपसे जुड़ा हो, संभव है कि वह आपसे व्यवहार कौशल भी ठीक उसी समरूप मृदुभाषी करेगा। यह भी कि, आपके हाँ में हाँ का स्वर भरण भी तड़ित के वेग में करेगा। चाटुकार और निंदक दोनो उत्तर-दक्षिण समरूप है। जहाँ एक ओर निंदक आपके कार्यों, प्रयासों या उपलब्धियों में खामियों का मिनमेख निकाल देता है। वहीं दूसरी ओर चाटुकार आपके प्रयासों और उपलब्धियों के संदर्भ में ऐसे शब्दों के जाल बुन देंगे की आपको विक्रमादित्य की उपाधि भी न्यून प्रतित होने लगे। ये ठीक उस रूप में है जैसे जोंक किसी जीव पर चिपक कर धीरे-धीरे रक्त का पान करते रहता है, और एक समय पर जिस जीव से जुड़ा रहता है वह दुर्बल होने लगता है। ठीक वैसे ही आप इन व्यवहारिक परजीवियों से घिरे रहने के कारण अपने वास्तविक कौशल से हाथ निश्चित धो बैठेंगे।

चाटुकारिता के धनी इन परजीवियों के पारिस्थितिकी तंत्र के विषय में तनिक विचार करके देखें। माना कि, आप एक सोशल सर्कल में रहते हैं। आप देखते हैं कि उसी सर्कल में या दायरे में एक ऐसे व्यावहारिक परजीवी का प्रवेश हुआ। प्रारंभिक अवस्था में तो यह परजीवी केवल एकल स्थिति में है, लेकिन यह अपनी पैठ मजबूत करने और प्रसार के लिए अपने अनुकूल वातावरण के निर्माण हेतू प्रयास करता है। यदाकदा किसी व्यक्ति विशेष में चाटुकारिक प्रवृत्ति हो तो उसे अपने पाले में कर, प्राथमिक अवस्था में अपना संघटन बनाता है। वर्चस्व कायम करने हेतु, उसी सर्कल में अमूलचूल परिवर्तन के लिए निरंतर प्रयासरत रहता है। एक समय लगता है कि जिस सर्कल में या दायरे में है वहां दाल नहीं गलने वाली तो फिर उस दायरे के जो लोग आपके लिए निष्ठावान हैं, उनही का विलोपन करने लगता है। तत्पश्चात् उसी सर्कल के अंदर नव सदस्यों का प्रवेश वह अपने ही हिसाब से करने लगता है। एक समय के पश्चात पूरे उस सर्कल में पूर्ण रूप से चाटुकारिता में पीएचडी धारियों का प्रवेश हो जाता है। सभी यह अच्छे से जानते हैं कि उनके लाभांश का मुख्य स्त्रोत आप हैं।

बहरहाल, इनके महिमामंडन और वाहवाहियों के भवर में यदि कोई व्यक्ति आ जाये, फिर तो शेष जाने क्या हो। इनका पारिस्थितिकी इतना मजबूत हो जाता है कि वहाँ अन्य नवाचारों के आवागमन में जैसे अपारगम्य धानी लगा दिया गया हो।

निश्चित है कि जिसका जन्म हुआ है उसका नष्ट होना वास्तविक परीणाम है। ठीक ऐसी सिद्धांत पर इन चाटुकारिता से लबरेज़ परजीवियों के पारिस्थितिकी का अंत भी निश्चित है। यह वह स्थिति होती है। जब आप सर्वस्व लुटा चुके रहें, चाहे वह क्षति धन, मान, सम्मान या ज्ञान की हो या अन्य। इस उच्चतम स्थिति में पहुचते ही जहाँ आप त्वरणहीन होकर, मंदन के गिरफ्त में आने लगते है। ठीक उसी स्थिति में इन चाटुकारों के पारिस्थितिकी में विरोध और टकराव की भयावह स्थिति निर्मित होता है। जो पूर्णरूपेण क्षतिग्रस्त केवल और केवल आपको करेंगें। आपसी टकराव से जहाँ अपने अस्तित्व में बिखराव प्राप्त करते हैं। वहीं अंतिम में आपको शक्तिहीन बनाकर, अन्य स्त्रोत की तलास में निकल पड़ते हैं।


लेखक 
पुखराज प्राज