Wednesday, September 30, 2020

दो टके लाथ के साथ (कारणमाला अलंकार में रचित कविता) : पुखराज प्राज / do take lath ke sath (poem composed in Karanamala ornamentation): Pukhraj Praaj

              
       (अलंकार- कारणमाला अलंकार) 

मैं लिखूँ या तू लिखे , है यह मनुज के ही हाथ में। 
निर्माण या विनाश हो, मिलेंगें ये कर्मों के साथ में।

और भटक रहा है क्यों? तू अनिष्ट की तलास में। 
छोड़ मोह कलियुगी,हृदय हरि हरै रख तू पास में। 

पहले अहम्  का अलंकार तोड़,शेष फिर बाद में। 
अहं से हो परे उर,सरस स्वाद वाणी के प्रसाद में।

मैं लिखूँ या तू लिखे, है यह मनुज के ही हाथ में। 
निर्माण या विनाश हो, मिलेंगें ये कर्मों के साथ में।

लालच का क्या भूत है चढ़ा,मिलेगा क्या लाथ में। 
मृगतृष्णा छोड़ मनीषी,देख जग है खड़ा साथ में।

मृदा होने आमादा तन,कुछ नहीं मिथ्या संताप में। 
आत्मा-परमात्मा के तलास में,मिलेगा सब आप में।

शांत चित्त से एकाग्रता,मिले ज्ञान फिर प्रकाश में।
कर्म में लिखों अहिंसा, द्वेष रखो दूर आकाश में।
 
मैं लिखूँ या तू लिखे , है यह मनुज के ही हाथ में। 
निर्माण या विनाश हो, मिलेंगें ये कर्मों के साथ में।

                              _प्राज