Friday, May 15, 2020

शहर की आवाज (लेख) : पुखराज प्राज



वर्ष २०१७-१८ की बात है। हमें अज्ञात स्थान(शहर की पहचान गोपनीयता हेतू) में एसआई भर्ती परीक्षा हेतु के जाना हुआ। ट्रेन की लम्बी यात्रा के पश्चात् दोपहर के वक्त अज्ञात शहर पहुचे। रहगुज़र पर फर्राटा मारते वाहनों और आँखे थका देने वाले ट्रेफिक को हमने पहली बार देखा था। सड़क पार करना तो जैसे, यमलोक के किनारे से गुजरने जैसे ही प्रतित हो रहा था, थोड़ी बहुत सैर-सपाटे ने हमारे जेब से वक्त का सारा माल अपने पोटली में डाल लिया। शाम के लगभग ६ बजे हमनें सराय में रात गुजारने की बुकिंग कर ली,और कुछ देर ठहर गए। दिन भर के थके थे,ऊपर से घुमने की फिराक में पेट में चुहे जो उछल-कुद मजा रहे थे, वो धरना प्रदर्शन को आमादा हो चले। सराय से बाहर निकल कर भोजनालय की तलास में निकल पड़े। समाने ही ब्रीज के पुल से सटे किनारे में छोटा सा होटल था। जहां लगा की भीड़ कम है। बैरा को हमने कहा भाई दाल-चावल और दो-चार रोटी, एक कोई सब्जी लगा दे। उसने फटाफट ऑर्डर पन्ने में नोट कर रसोई तरफ भागा। मन ही मन सोचने लगा, "अच्छा बड़े शहरों के वेटर, सिस्टेमेटिक ढ़ग से काम करते हैं, वाह..!!! "

तभी एक अधेड़ उम्र का आदमी और एक बच्ची (उम्र यही कोई १५-१६वर्ष) अंदर आये। फटाफट आर्डर दिया, फिर चिल्ड पेय की फ़रमाइश चुटकी के इशारे से की। उनके एक्ट ऑफ एक्सप्रेशन से साफ लगा की, रेग्यूलर कस्टमर हैं। बहरहाल, सामने जो लड़की थी, उसके कपड़े,दबी जुबान में बात कहना और डरना बता रहा था की वह जिस व्यक्ति के साथ आई है, उससे परिचित नहीं है। उनके वार्तालाप में एक चीज यह भी कॉमन था की व्यक्ति धन के रौब में युवती को काम दिलाने शहर लेकर आया है। "अरे...! ऐसे शर्माओंगी तो कैसे चलेगा?? भूल जाओं घर वालों को, उनको तुम महिने-महिने पैसे भेजती रहना। और ठीक से खाया करो? तभी तो गोस्त जैसे दिखोगी ?" ये शब्द उस व्यक्ति के थे। इशारा साफ समझ सकते हैं, कि वह उस बच्ची पर आधिपत्य दिखलाने में कोई गुरेज नहीं कर रहा था। कुछ देर पश्चात् वे वहां से चले गए...!! मगर मेरे मष्तिष्क में मानो सवालों के तड़ित प्रहार पर प्रहार कर रहे थे। 

इसी संदर्भ में डीडब्लू न्यूज के ९ अक्टूबर वर्ष २०१९ की एक ख़बर की जिसमें प्रॉस्टिट्यूशन के लिए विदेश से लाई गई, १८० लड़कियों को बचाया गया। वहीं भारत में भी कुछ ऐसे बड़े शहरों के क्षेत्र हैं जिन्हे रेड अलर्ट एरिया घोषित किया गया है। वहीं नाबालिक लड़कियों पर प्रोक्यूरेशन ३३८२ मामले, वर्ष २०१७ और ३०३९ मामले वर्ष २०१८ में दर्ज हुए हैं। ये रिपोर्ट्स बताते हैं कि शहरीकरण के आपाधापी वाले कोलाहल के बीच एक चीख़, एक शोर, एक सिसक दब जाती है। शायद शोर इतना है की, लोगों की नैतिक मूल्यों के विषय में विचार से पहले मष्तिष्क शून्य हो जाता है। 


आपका
पुखराज "प्राज"
गरियाबंद


संदर्भ:-
०१. www.dw.com  न्यूज रिपोर्ट ९ अक्टूबर १९
०२. न्यूज १८ डॉट काम/ न्यूज रिपोर्ट २६ मार्च २०१६
०३. भारत में अपराध २०१८( सांख्यिकी भाग-१)/ प्रकाशक- नेशनल क्राईम रिकार्ड ब्यूरो, पृष्ठ संख्या ३, सारणी १.२
०४. गुगल डॉट कॉम
०५. विकिपीडिया डॉट कॉम
०६. मनोविज्ञान/ ह्यूमन नेचर फॉर सोसाईटी