Thursday, May 14, 2020

अपरिभाषित निदाघ(कविता) :- पुखराज प्राज

शीर्षक- अपरिभाषित निदाघ
विधा- कविता (समाहित अलंकार)

है रत्नगर्भा  मौन , मौन  अभी  इसके वासी। 
कोलाहल भी  ठौर चुना  है , निर्जन भाषी।१

शुक्र मनु का है खंडित, खंडित संख्या राशि। 
विपदा भी मरक रूप धरे , मृत्यु अभिलाषी।२

विवर्तन,मदंन को अर्थ,अर्थ है पतन की त्रासी। 
जाने प्रकृति-कृतिम वबा? जो बन बैठी प्यासी। ३

स्वेत शांत निर्मोह जीवन, जीवन था संन्यासी। 
तृष्णा ने गढ़ी स्याह , फिर स्याह बने पिपासी। ४

और अनिष्ट ना हो तनिक, तनिक ना टूटे राशि। 
मोल समझों प्राज प्रतिवेश सब हैं, रहवासी।
                         _प्राज