विधा- कविता (समाहित अलंकार)
है रत्नगर्भा मौन , मौन अभी इसके वासी।
कोलाहल भी ठौर चुना है , निर्जन भाषी।१
शुक्र मनु का है खंडित, खंडित संख्या राशि।
विपदा भी मरक रूप धरे , मृत्यु अभिलाषी।२
विवर्तन,मदंन को अर्थ,अर्थ है पतन की त्रासी।
जाने प्रकृति-कृतिम वबा? जो बन बैठी प्यासी। ३
स्वेत शांत निर्मोह जीवन, जीवन था संन्यासी।
तृष्णा ने गढ़ी स्याह , फिर स्याह बने पिपासी। ४
और अनिष्ट ना हो तनिक, तनिक ना टूटे राशि।
मोल समझों प्राज प्रतिवेश सब हैं, रहवासी।
_प्राज