Thursday, May 7, 2020

हाँ.....! मैं पत्र बोल रहा हूँ !(लेख) :- पुखराज प्राज


नमस्कार, मेरा नाम पत्र है। स्त्रीलिंग शब्द में चिट्टी, डच में ब्रीफ, अरबी में रिशाला और चीनी में जिंन् के नाम से जाना जाता हूँ। पत्र या चिट्ठी या ख़त किसी भी नाम से बुला सकते हैं मुझे! मुझे अच्छे से याद है सन् १७६६ ई. में लार्ड क्लाइव ने भारत में पहली डाक घर की व्यवस्था स्थापित किया था, और ठीक उसके ८ वर्षों के पश्चात् सन् १७७४ में वारेन हेस्टिंग ने कलकत्ता में पहले डाकघर की स्थापित किया। इसे भारत वर्ष में मेरा प्राथम्य पदार्पण कह सकते हैं। वास्तव में भारत ने मेरी पहचान दुनिया से अगल ही स्वरूप में दी, इसका अंदाजा आप आनंद बक्षी साहब के लिखे गीत " चिट्टी आई है.. आई है चिट्टी आई है " के पंकज उदास जी के स्वर लगा सकते है। पहली चिट्टी/ पत्र का अनुमान इतना ही लगाया जाता है की डाकघरों की स्थापना अंग्रेजोे ने की, तो भारत में पहली चिट्ठी लिखने का गौरव थोड़ी छोड़ देंगे। बहरहाल, शनै:-शनैः मेरा विस्तार भारत के उत्तर से दक्षिण और पूरब से पश्चिम तक हुआ। आज भी मैं अलग एक पहचान रखता हूँ, एक अलग अहसास रखता हूँ लोगों के ख़्यालों में । 

मुझे याद है, सैनिक बेटे के नाम माँ का संदेशा, कश्मीर के बर्फिले पहाड़ियों तक मैं ही तो लेकर गया था। उफ्फ बड़ी कड़ाके की ठंड थी, मैं भी कोर से भीग गया था। डाकिया भी बड़े संभालकर ले गया पर ठंड, बर्फ से भरे रास्ते और गिरते बर्फ क्या कर सकता था वह भी, पर जैसे ही मुझे सैनिक के हाथ में दिया। मैनें देखा वो जवान सिपाही खुशी से भर उठा, मानों अलग सी ताजगी उसके अंदर समा गई हो। उसने बड़े प्यार से पढ़ा, सीने से लगाया फिर अपने यादों के पिटारों में मुझे समेंट कर रख लिया। 

कई ऐसे वाक्यों से मैं रोज दो-चार हुआ करता था। चाहे पहले प्यार की पहली चिट्ठी कहें, सुख-दु:ख की बातें, कुछ भूली बिसरी यादें, किसी को लताड़ती चिट्ठी, किसी याद में रोती चिट्ठी, किसे के आने की ख़बर से भरी चिट्ठी, किसी के चले जाने का संदेशा देकर गमगीन करती चिट्ठी जाने क्या-क्या नहीं!!!!  किसे के नौकरी का संदेश, किसी के विवाह का संदेश, किसी के विदेश जाने का संदेश, बहुत कुछ रहा मैं । 

औपचारिक-अनौपचारिक दोनो पहलुओं में मेरा स्वरूप चाहे जैसा भी हो, मैं पूरे भारतवर्ष के दिलों में राज करता रहा, अभी भी हूं। थोड़ा चलन बस बदल रहा है, ये भी सहीं है भई क्योंकि वक्त भी तो बदल रहा है।

मैंने भी स्वरूप बदला, या कहें तो बहुत सारे संस्करण होते रहे। चाहे बात पूरे भारतवर्ष को पिन कोड्स में बाटने का प्रयास १९७२ का हो या फिर पत्र व्यवहार में तेजी के लिए १९८६ में स्पीड पोस्ट के की शुरूआत भारतीय डाक सेवा द्वारा किया गया हो। मैं वक्त के साथ अपडेट होते रहा। कभी विरोध के लिए मेरा उपयोग सिम्बॉलिक रूप में हुआ है। मै तो पत्र हूं, सूचना देना ही मेरा धर्म है।

       एक और घटना जिसका जिक्र अवश्य करना चाहूंगा-

१९६० के दशक में इंटरनेट नेटवर्क की उत्पत्ति संयुक्त राज्य संघीय सरकार द्वारा कंप्यूटर नेटवर्क के माध्यम से मज़बूत, गलती-सहिष्णु संचार के निर्माण के लिए शुरू की गई थी। १९९० के शुरुआती दिनों में वाणिज्यिक नेटवर्क और उद्यमों को जोड़ने से आधुनिक इंटरनेट पर संक्रमण की शुरुआत हुई, और तेजी से वृद्धि के कारण संस्थागत, व्यक्तिगत और मोबाइल कंप्यूटर नेटवर्क से जुड़े थे। २००० के दशक के अंत तक, इसकी सेवाओं और प्रौद्योगिकियों को रोजमर्रा की जिंदगी के लगभग हर पहलू में शामिल किया गया। शायद इंटरनेट के इस्तेमाल से मेरे वर्तमान पर रहने नहीं रहने का सवाल भी उठ चला, पर आज भी मैं अपने अलग इतिहास के साथ भावी पीढ़ी के संदेशों के चलन के लिए तैयार हूं। माना की थोड़ी उपयोगिता शासकीय प्रक्रमों तक बंधने का डर लगा रहता है। पर फिर भी मुझे विश्वास है मेरे चाहने वालों के दिल में और उनके संदेश व्यवहार में, मैं जिंदा रहूंगा...... आपका अपना पत्र!!! 






लेखक
पुखराज प्राज
छत्तीसगढ़

संदर्भ-

०१. मीडियम जर्नल
०२. भारतीय डॉक सेवा
०३. विकिपीडिया डॉट कॉम
०४.  लिरिक्स इण्डिया डॉट कॉम
०५. आजतक न्यूज
०६. इण्डिया टुडे न्यूज पोर्टल