Monday, April 27, 2020

हम फिर मुस्कुराएंगे....! by कवि पुखराज प्राज



ये गलियाँ, ये बस्तियाँ, 
ये दरवाजे, खिड़कियाँ, 
वो चौंक,चौक के चौराहे की पहचान, पनवड़ियाँ। 
ये स्कुल, ये कॉलेज..! 
ये रंगों से भरी प्यारी सी,अपनी दुनियाँ
ये गांव,ये कस्बे, ये शहर, ये राज्य, ये देश..! 

शांत हो चला है,कोरोना के कहर से,
वो बच्चों की किलकारियाँ....। 
वो पतंगों के हवा में अठखेलियाँ। 
वो शहर-शहर, वो गांव-नगर, 
गुंजती शोर की मद-मस्तियाँ....!! 
ठहर सा गया है कुछ देर सहीं..! 
वीरानें में मानो फिर से खलल मचाएंगे, 
हम फिर मुस्कुराएंगे.., हम फिर मुस्कुराएंगे। 

बंद है रहगुज़र पर आवाजाही, 
परेशान है चंद पल,मंजिलों के राही। 
लेकर विजयी,अधर  पर मुस्कुराहटें, 
हम फिर मुस्कुराएंगे, हम फिर मुस्कुराएंगे। 


बदले-बदले से रहेंगे कुछ हाताल, 
बदले से रहेंगे धरा के मिजाज। 
निर्माण और नव-सृजन ही गति अपनी, 
शनै:-शनै: ही सहीं, 
वक्त का पहिया फिर से सरपट चलाएंगे। 
हम फिर मुस्कुराएंगे, हम फिर मुस्कुराएंगे। 

फिर से लौट आएगी सड़कों पर रौनक, 
फिर से बजेंगी स्कुलों में घंटियाँ। 
फिर से वहीं भीड़ पर नज़रें दौड़ाएंगे। 
फिर से मेहनत, सोने सा ख़रा बनाएंगे। 
फिर से कांधे से कांधा मिला खड़े हो जायेंगे। 
हां मुझे यकिन है, इस दौर के बाद, 
फिर हम फिर मुस्कुराएंगे, हम फिर मुस्कुराएंगे। 

                             _पुखराज प्राज