कॉलिंश डिक्शनरी के शब्दों में पुस्तक का अर्थ है किसी विशेष विषय पर आधारित, पाठकों के लिए तैयार की गई मुद्रित सामग्री पुस्तक है। १२ अप्रैल १९५४ को जन्में रचनाकार सफ़दर हाशमी की पंक्तिया कौन भूल सकता है- "किताबें करती हैं बाते बीते जमानों की...!!" किताबों के परिचय के लिए यह अद्वितीय कविता है।
आपको पता है चीन के हान वंश के सम्राट होती के दरबार के राजनेता काई लुन (Cai Lun) ने सन् 105 इसका आविष्कार किया था। वहीं पहली बार मुद्रण के यंत्र का अविष्कार गुटेनबर्ग ने सन् १४५० में किया। कागज और मुद्रण दोनो ही अविष्कारों को किताबों के निर्माण में आवश्यक कड़ी के रूप में देख सकते है। इन दोनों अविष्कारों बिना यह विचार संभव ही नहीं है की किताब भी बनाई जा सकती है।
बहरहाल, मेरा विषय किताबों पर नहीं अपितु, किताब के रूप में प्रकाशित होने वाली साझा संकलनों पर है। इसकी उपयोगिता क्या होगी? एवं इसके बौद्धिक लाभ क्या हो सकते है? इनको तलासना है। उदाहरणत: हम एक साझा काव्य संग्रह पर चर्चा करते है। किसी साझा संग्रह में आप क्या देखते हैं। सर्वप्रथम विचार यही बनता है की कवियों की / बहुत से कवियों की कविताओं का संग्रह है। पर मेरा जवाब़ आपके विचार से जस्ट उलट ही है। मैं देखता हुं की साझा काव्य संग्रह में विभिन्न प्रांतों के विभिन्न परिवेशों में रहने वाले बुद्धिजीवों के विचारों का संग्रह है। किसी भी काव्य संग्रह का आकलन केवल उसमें सम्मिलित रचनाकारों या पुस्तक के पृष्ठों के या पुस्तक के मूल्य पर या मूद्रण राशि के आधार पर करना उचित नहीं है। हर सिक्के के दो पहलु होते है। काव्य संग्रहों के भी है।
आईये हम साझा काव्य संग्रहों के संकलन,अर्थ एवं व्यापारिक दृष्टिकोण से पृथक बौद्धिक दृष्टिकोण की ओर चलते हैं। तनिक सोचकर देखें किसी स्व प्रकाशित प्रलेख के रचनाकार किसी प्रकाशन/मुद्रण कार्यालय से १०० प्रतियां प्रकाशित कराता है। उसके विमोचन एवं विस्तार करता है। फिर भी यदि वह अधिकाधिक प्रचार-प्रसार करता है। तो उसके विचार एक राज्य से निकल कर २ या ३ राज्यों तक ही प्रसार कर पाता है। यानी १०० प्रति की किताब को ३ राज्यों तक पहुचाने के लिए अर्थ और श्रम दोनो व्यष हुए। मेरे विचार से लेखक भी सहमत होगें की लेखक का उद्देश्य केवल इतना होता है कि उसके द्वारा लिखित विचारों के संग्रह का प्रसार जनमानस तक हो। समाज को शिक्षा मिले और पुस्तक में दिये गए विचारों पर बौद्धिक चर्चाएं हो।
यहां तक सही समझ रहे हैं तो आगे बात करते हैं साझा संग्रहों के ऊपर, साझा संकलन में मानकर चलते है ५० रचनाकारों के काव्य का संग्रह है। और सभी रचनाकारों को २-२ प्रतियां भी विस्तारित करने का प्रबंध हो, तो एक ही संग्रह में ५० रचनाकारों के संग्रह में सभी के विचारों का कलेक्शन हाथों-हाथ ही विभिन्न क्षेत्रों में विस्तारित किया जा सकता है। वहीं रचनाकारों के विचारों के संकलनों का प्रसार निरंतर चलते रहता है। इसे शोध के कच्चे मटेरियल के स्वरूप भी समझ सकते है। जैसे २०१० में प्रकाशित किसी साझा संग्रह में कितने लोगों ने किस विषय पर केन्द्रित होकर क्या लिखा? किस कवि का दृष्टिकोण किस प्रकार का है? साझा संकलन में सम्मिलित रचनाकारों में प्रयुक्त हिन्दी के प्राचीन शब्दों का प्रयोग करने वाले कवि कितने है? इत्यादि का अध्ययन आसानी से किया जा सकता है।
लेखक
पुखराज प्राज
लाईब्रेरियन (विवि)
संदर्भ-
०१. कॉलिंश डिक्शनरी
०२. कविता कोश डॉट काम
०३. ऑनलाईनज्ञानी डॉट काम
०४. एनसाईक्लोपिडिया ऑफ लाईब्रेरी एण्ड इन्फोर्मेंशन साईंस