Tuesday, April 21, 2020

सफलता की छोटी-छोटी कहानियां : पुखराज "प्राज"





सालों पहले की बात है.....!!! कोई भी कहानी तो ऐसे ही शुरू होती है,तो हम भी क्यों न उसी ढ़र्रे से शुरूवात करते हैं कि, बहुत पहले की बात है, जब न्यूटन साहब,एप्पल यानी सेब के पेड़ के नीचे बैठे थे। सेब गिरा और उन्होने ने ग्रेविटी की खोज कर ली....!!! राईट। ये सूनने में तो अच्छा लगता है, परंतु वास्तविक अनुभव में अगर देखें तो अगर उस दिन न्यूटन साहब के मन में जिज्ञासा ने ठक-ठक करके दिमाग के बंद दरवाजों में दस्तक नहीं दी होती तो, वर्तमान में जो उपकरण आप उपयोग कर रहे हैं। ये अविष्कृत ही नहीं हुए होते या होते तो भी सालों देर लगे होते। 

               एक पृष्ठ उस समय का देखें तो आवश्यकता डिमाण्ड पर था और अविष्कार रिमाण्ड पर था। शायद किसी ने इसे जोड़ते हुए कहा है ना- "आवश्यकता ही अविष्कार की जननी है। " तनिक सोचकर देखें की जिस वक्त ये अविष्कार/खोज हुए उस समय सहायक वस्तु के रूप में मानवीय विचारों और कुछ छोटे मोटे पन्नों में बनाए नोट्स के अलावा कुछ नहीं था। वर्तमान समय विकसित और विकास की सीढ़ी पर फर्राटा मार रहा है लेकिन वर्तमान के जीवित प्राणी का माथा लगभग जीरो बटे सन्नाटे वाले थेवरी पर काम करके ही प्रसन्नचित - मुद्रा का धारक बना हुआ है। 

                १५ अक्टुबर १९३१ को धनुषकोडी गांव (रामेश्वरम) में जन्में महामानव के प्रारंभिक शिक्षा के सफर में शिक्षक इयादुराई सोलोमन ने उनसे कहा था कि जीवन मे सफलता तथा अनुकूल परिणाम प्राप्त करने के लिए तीव्र इच्छा, आस्था, अपेक्षा इन तीन शक्तियो को भलीभाँति समझ लेना और उन पर प्रभुत्व स्थापित करना चाहिए। शायद इस बात को उस महामानव ने गांठ बांध लिया। और फिर देखिए की अपने लक्ष्य के पीछे ऐसे निकले की आज दुनिया मिसाइल-मैंन के नाम से जानता है।

           कभी सोचा है आपने ग्लास को उल्टा करके पानी से भरे पीपे में डुबाने से ऊपर की ओरधक्का लगता है। इसे सापेक्षता कहते है। हम अभी भी K से कन्फ्यूजन में हैं की भला गिलास में ऐसे क्या है की ऊपर आने के प्रेशराईज करता है। लेकिन इसी थेवरी को सुलझाकर अल्बर्ट आइंस्टीन ने सापेक्षता के सिद्धांत की मजबूत नीव रखी, इसी मजबूती के बदौलत बड़े-बड़े जहाज समुद्र में तैरते हैं। 

             क्या कभी आप ने यह सोचा है कि जो पैरामिटर्स आप अपने लिए बनाते है। क्या उसे पाने के लिए ईमानदारी से प्रयास करते है? मुझे आपके जवाब़ का अंदाजा है। बहरहाल, अभी विलम्ब नहीं हुआ है। किसी फिल्म का एक धाँसू डायलॉग याद आया "पिक्चर अभी बाकि है मेरे दोस्त...!!! " वैसे ही जीवन निरंतर परिवर्तन का नाम है और सफलता आपके पहचान की वह प्रतिमा है, जो आपको अन्य से भिन्न करता है। जैसे बाहुबली में भल्लालदेव के सोने की विशाल मूरत के समान, आप अपने आप को समाज के समक्ष रख पाते हैं। जिसे अटल, अमिट, अद्वितीय और वैभवशाली बनाने के लिए निरंतर प्रयास करना पड़ता है। 

               कई ऐसे भी है जो सोचते है, अभी तो टाईम है। और कई ऐसे है जो सोचते है, अपना टाईम आएगा। सब बकवास से कम नहीं, टाईम आता नहीं लाया जाता है। रोज थोड़ी -थोड़ी मेहनत आपको कुशल मेहनतकश बनाता है। और यही आगे चलकर विशाल विजयश्री का उद्योतक होता है। सफलता प्राप्त करने के लिए, सफल बनने के लिए, रोज मेहनत कीजिए....! कब तक पहाड़ नहीं टूटेगा...! हिम्मत अगर दसरथ मांझी जैसा हो, तो आप भी गर्व से कहेंगे- "जब तक तोड़ेंगे नही, तब तक छोड़ेंगे नहीं...!!! बोलो तैयार हो.....। बोलो तैयार हो.....। जोर से.... बोलो तैयार हो।


लेखक 
पुखराज प्राज