किसने गरिमा गढ़ी और अनुचित माला डाला है।
जाति-पाति-पोथी कौन गढ़ रहा है चुपके से,
लहू-स्पंदन एक से फिर किसने जाला डाला है।
और, वर्ग जो शोषित है उसपर और शोषण का,
मंत्र फूंक किसने ज्ञान पर अज्ञान दुशाला डाला है।
जाने कौन समझेगा,हम भाई-भाई हैं एक कुल के,
वर्त गर्त है और भावी गर्त से पढ जाये ना पाला है।
ऊँच-नीच की प्रतिमा पर किसने हाला डाला है।
किसने गरिमा गढ़ी और अनुचित माला डाला है।
_पुखराज प्राज