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Monday, June 10, 2019

आओं कुछ कर बैठें by Pukhraj yadav

ज़िन्दान में कब्र बनाने की तैयारी कैसा।
सिद्दत नहीं तुम में, तो होशियारी कैसा ।

फिर बात वहीं फसी है,दौर-ए-तोहमत,
यार फिर तेरे-मेरे दरमियाँ में यारी कैसा।

तग़ाफुल कर बैठे अपनों को रफ़्ता-२,
फिर से राब्ता की तेरी दावेदारी कैसा।

यों सोचकर चले थे सोहबत में तुम्हारे,
कुछ कर गुजरेंगे,पलटे यों..वारी कैसा।

माना तवज्जों के भाव थोड़े महंगे ठहरे
न तवक़्क़ा तुमसे,तो तुम्हारी बारी कैसा।

रिवायतों पर भरोषा भर्रभराकर गिरेगा,
तब जान पाओगे फर्क अँधियारी कैसा।

          *✍पुखराज प्राज*