ठहर,
दो पल,
भागाभागी ठीक नहीं,
मरिचिकाओं की यारी मनुज,
वर्तमान चाल संग,
कदा ठीक,
नही।
अपेक्षाओं,
चितनों और,
अनुसंधानों का क्षण,
क्षणिक भी भ्रमक हो,
लाभ लालसा लिप्त,
होना ठीक,
नही।
अलहदा,
सारथी है,
जग काल का,
कृष्ण समझना ठीक नहीं,
चुनना विकट है,
मगर हारना,
नही।
अग्नि,
ज्वर जीवन,
जलज बनता चल,
मौन मिथक मनु मलंगा,
झौरे-झौरे फिरना,
कभी ठीक,
नहीं।।
_✍पुखराज