Sunday, September 9, 2018

लोकतंत्र अमर कर जाने को....by Pukkhu

कुर्चिकाओं और कवित्व चलो निमित्त तुम,
प्रणम्य शिखर -सा लक्ष्य बन जाने....को।
जन-जन में जन-गण-मन का वास....हो।
आओ गणतंत्र को और मजबूत बनाने को।

इतिहास की गौरव को संजोएँ सब को,
भावी भरे भाव भिन्न विचार बढ़ाने को।
छलछंदी न और न हो कोई निरपेक्षिता रोधी,
ना हो मवाद,न कोई दीम़क सा चर जाने को।

मुक्त-मुक्त हो और धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र,
गणतंत्र में हो विचारों की आजादी मुखर,
और भय मुक्त हो जन-जन सामाजिक हर-चर,
ऐसे मिलकर हम दोनो नव सृजन करेंगे।
उँजरिया नूतन नरथल पर लाने....को।

देसावर तक चले आभा अपनी...
धमक विश्व में बन जाने को।
आओं लिखें कुछ हम-तुम कुर्चिका,
संविधान को पवित्र ग्रंथ बनाने को।

मेरे मन में और तेरे मन में,
होनी चाहिए लोकतंत्र पर आस्था भाव रे..!
प्रणिधन हो चित्त और एक रहे शेष भाव रे..!
फिर गुंज हो विजय विश्व भारतवर्ष,
आओ कवित्व और कुर्चिंकाओं कुछ लिख जाएँ,
लोकतंत्र को अमर कर जाने को...।
लोकतंत्र को अमर कर जाने को....।

कवि- पुखराज यादव "पुक्कू"
        
संदर्भ स्त्रोत-

१. विश्व कोश सं. पेज नम्बर- १०१
२. ओक्सफोर्ड डिक्सनरी- पेज- ५०९
३. भार्गव आदर्श हिन्दी श.को. ४०१/१०१/३११/१८५
४. नालंदा विवि पत्र पेज. - ३१
५. इग्लिस ब्रीटेनिका वि.को. पेज- १२७८