वक्त अाहिस्ते-आहिस्ते ही मगर ढ़लना,
अए..ख्वाब उसके आने पे धीरे चलना।
पहले तो ईंद्रधनुषी कला से रंग चुरा लू,
उसके रंग पर है हौले-हौले ही मलना।
सिद्दत से जिद पकड़ लिया है मैने भी,
आज तो उसका तस्वीर है हमें गढ़ना।
कहीं सावन की बौछारे शरारत पे न आए,
कैनवास पे कुर्चिंकाओं जल्दी चलना।
अभी दीदारे हुस्न का सिलसिला हुआ,
कहीं फिसल न जाए रंग थोड़ा संभलना।
बरसो के ख्वाब ने सजाया है पार्श्व ढ़ंग,
जरा धीरे से कंचनी को कृतित करना।
मेरा नाम चाहे ना रहे पुक्कू तनिक सून,
तस्वीर को खजुराहो की मूरत सा रंगना।
*©पुखराज यादव"पुक्कू"*
महासमुन्द