तू उस पार खड़ी।
मै खड़ा हूँ इस पार।
बीच नदी की हिलोर,
आऊँ कैसे उस पार।
तू छीप जाती सावन में,
मै ढूबा करता इँतजार।
लिखे कई प्रेम पत्र पर,
मल्लाह ना ले जाता पार।
चलती तू भी साथ-साथ,
मै भी करता सफर इस पार।
बड़ा दुखता जब छोड़ नदी जाती,
सुखी तूभी,प्यासा मै इस पार।
मन करता लांघ सारी हदें,
आऊँ मिलने उस पार।
विधि नहीं लिखी कोई ऐसे,
मिल जाएँ जो नदी के पार।
तू भी ठहरी, मै भी ठहरा,
दोनो तड़पते अपने पार।
प्रेम कम ना करना प्रिये कभी,
मै करता रहूँगा हमेशा इँतजार।।
©पुखराज यादव