Tuesday, February 13, 2018

मां फिर से लोरी सुनादे ना...

खफा-खफा है निंद कहीं,
चिंताओं के शोले धधक रहे।
सौ-सौ पीर पीठ पर पड़े है,
माथे पर विचार खटक रहे।
   सारे मेरे गम भूला देना..
   माँ...एक लोरी सुना देना।

दिन झकोरते धूएँ-धूएँ से,
आँखों में जलन तेज है, माँ।
निंद खरीदू चैन बेच कैसे,
आज फिकी लगे सेज है, माँ।
      सारे गम भूला देना,
      माँ...एक लोरी सुना देना।

तू हर बात भाप लेती है।
सारे शब्द पहचान लेती है।
फिर से उलझला हूँ देख मुझे,
मेरे दुख तू कैसे हर लेती है।
    सारे गम भूला देना।
    माँ...एक लोरी सुना देना।

मेरे बचपने की शैतानी,
राजा और परीयों की कहानी।
फिर से गोद में सिर छिपा लेना।
आँचल तेरा ओढ़ा देना माँ।
      सारे गम भूला देना।
      माँ..एक लोरी सुना देना।

    ©पुखराज यादव