Tuesday, February 13, 2018

इश्क का मयखाना

आजा शाकी एक जाम बनाए।
प्याला भर,पर छलक ना पाए।
पीता चल,थोड़ा-थोड़ा प्याला,
कम ना कहीं नशा ये हो जाए।
आ...
बड़ी महफिल सजी है।
इश्क के..मयखाने में।।

कुछ नैनों से पी रहे है।
कुछ छूपकर जाम उठा रहे।
कुछ चाहत में है लत लगाने की,
कुछ भर रहे है अपना प्यासा..।
आ...
बड़ी महफिल सजी है।
इश्क के..मयखाने में।।

कोई धूत है नशे में,
कुछ चूर हुए है मजे में।
कितने आशिक बने है,
कितने खड़े है लाईनों में।
आ...
बड़ी महफिल सजी है।
इश्क के..मयखाने में।।

कुछ शर्मा रहे है,
कुछ घबरा रहे है।
कुछ दबे पांव आ रहे है।
भीड़ बड़ी है पैरदाने में।
आ....
बड़ी महफिल सजी है।
इश्क के..मयखाने में।।

कोई झूम रहे गीतों में,
कुछ घूम रहे है प्रीतों में।
कोई मशहुर हुआ है आशिक,
कुछ ढूढ़ रहे अपने सीटों में।
आ....
बड़ी महफिल सजी है।
इश्क के..मयखाने में।।

तू भी आना मेरे महबूब मेरे,
झूमें हम भी इश्क के गीतों में।
मै भी,तू भी ले चलो उठाए प्याला।
आज खुली है ऩयी मधुशाला।
आ...ना...
बड़ी महफिल सजी है।
इश्क के..मयखाने में।।

       ©पुखराज यादव