बहूँत शोरगुल है।
ध्वनियों के तानेबाने में।
शांति नहीं दिख रहीं,
शहर वाले कारखानें में।
ठहर ओ...साथी
खामोशी बुनने दे जरा।
कही चकाचौंध है।
कहीं धूमधड़क है।
भागमभाग दिखे.।
कहीं तड़कभड़क है।
ठहर ,ओ...साथी
खामोशी बुनने दे जरा।
दिल के भीतर-भीतर,
जाले जम बैठे है देख।
कभी तो थम,रूक तू,
कभी तो खूदको देख।
ठहर ,ओ...साथी
खामोशी बुनने दे जरा।
मशाल जलाये क्यों है,
आने दे तन्हाई जरा।
माना आदी है तू दिवाने,
कोलाहल का तू बड़ा।
ठहर, ओ...साथी
खामोशी बुनने दे जरा।
बैठे विराने में कभी तो,
दिल से बातें होने दे जरा।
दुशाला ओढ़े कहीं विचार,
पास आने दे सनम जरा।
ठहर ओ...साथी
खामोशी बुनने दे जरा।
कुछ पल स्लाई में भर दे।
कुछ पल चुप कर रख दे।
लहरों को ठहरने दे जरा।
घर में हो रोशनी भरने दे।
ठहर , ओ...साथी
खामोशी बुनने दे जरा।
©पुखराज यादव