तप्त धूप के ताव में,
खुब खिललिलाएँगें...हम।
जरा जोरररर से.....
चिल्लाएँगें अजी आज हम।
एक तरफ,जो छांव हो।
खुशियों का यार गांव हो।
या हो कोई महफिल सजी।
चाहे हो.. जन्नत सजी-धजी।
छोड़के सबकुछ सनम,
नंगे पाव ही रेत पे....,
दौड़ जाएंगे.....आज हम।
ले चटकारे,
धूप का मूह चिढ़ाएंगे।
आज हम।
एक पल भी सोंचे न कुछ।
बस कर भरोसा कर्म पर...
अग्निपथ पर दौड़ जाएंगे हम।
©पुखराज यादव