हिन्दू कहलो,
या कह दो,
.....मुस्लमान।
कहो चाहे सिक्ख,
या कह दो मसीही,
हूँ तो मै ....इंशान।
बाटे-बाटे क्यों,
फिरते रहते तुम।
अलहदा मेरी है,
........पहचान।
खुन एक सा,
रंगत एक सी।
फिर बटे क्यों,
आपस में तमाम।
मेरा आल्लाह भी,
मेरे है भगवान,
गुरू भी मेरे,मेरे ईशा,
सब है सारे समान।
हसते होंगे,
ऊपर वो फरिस्ते।
कहकर,
कितना बदल गया,
इन्शान.....।
किस मिट्टी के,
हम-तुम बने,
करो तो पहले,
यह पहचान।
दर्द तुझे भी,
जितना मुझे।
चूभे जो कांटे,
फर्क बता दे,
ओ स्याने इंन्शान।
©पुखराज यादव