Tuesday, February 13, 2018

आज छत पर हूँ....

पास आओ,
ओ चांदनी....
छत पर हूँ।

ठहरा तुम पे,
नज़र आज,
जो घर पर हूँ।

कागज किस्ती,
बनने आमादा..
शांत लहर पर हूँ।

बड़े दूर-दूर रहे,
अब पाने की,
मंजर पर हूँ।

ख्वाब फिर आए,
स्वप्नो के तिलिस्मी,
शहर पर हूँ।

कितने अरमान,
कितने चाहतें,
आखों में भरने के,
आज तेरे दर पर हूँ।

तुम भी मुस्काओ,
मै भी हस-लूँ,
आज छत पर हूँ।।

    ©पुखराज यादव