Tuesday, February 13, 2018

बहूँत दिनों बाद, निंद,आँखों पे आयी।

इठलाई,
थोड़ी शर्मायी सी।
ख्वाब आज,
सज-धजकर आयी।

बहूँत दिनों बाद,
निंद,आँखों पे आयी।
ठहर ख्वाब बोली,
इंतजार क्यों करायी।

कैसे कहूँ,
सौ उलझनें है।
कहीं आपाधापी,
सौ अड़चनें है।

कभी करवट,
कभी मरोड़।
कभी आकांक्षाओं,
भरे खड़े हरोड़।

बंद-बंद है,
भितर द्वंद है।
रोजी-रोटी,
सारे द्वंद-द्वंद है।

मुस्कान खोई,
रातें निंद खोई।
मन में हलचल,
भारी अंतर्द्वंद है।

आज थकान,
लपेट निंद है लायी।
तभी सलोनी ख्वाब,
आज तू पास है आयी।

     ©पुखराज यादव