पर्यावरण प्रदुषण का ग्राफ दिनोदिन बढता जा रहा है। एक कहावत ये भी था कि शहरों में ज्यादा प्रदुषण होता है। लेकिन अब ऐसा नहीं गांवों से भी अब प्रदुषण हो रहा है। आप चैकिए मत की कैसे? छोटे-छोटे रूप में ही सही पर प्रदुष का यहां भी ग्राफ तेजी से बढने लगा है।
आपको याद होगा ही कभी न कभी ये जरूर देखा होगा की गांवों में लोग खेतो से फसल काटने के बाद जो शेष भाग रहा जाता है फसल का उसे आग लगा दिया जाता है। भारी मात्रा में वहां भी कार्बन-डाई-आक्साइड गैस पनपता है।
खैर ये तो कभी कभार की ही बात हुई। आज हम पर्यावरण की संरक्षण की बात करते है पर कहां तक हम ऐसे प्रयासों में लगे है हमे सोचना होगा। शहरों में तो पर्यावरण का दोहन इतने बेतहासा होता है कि क्या बताए? इसका सीधा प्रभाव यह भी है कि शहरों की वायु विषैली हो चला है।
पर्यावरण को संरक्षित करने में भरसक प्रयास करे और पेट्रोलियम पदार्थो का दोहन कम से कम करे जिससे पालूषन पर कुछ तो हम नियंत्रण कर पायेगें।।